देहरादून/उत्तरकाशी। उत्तराखंड में गंगोत्री नेशनल पार्क के गेट खुलने के बाद गोमुख ग्लेशियर के संबंध में आई ताजा रिपोर्ट बहुत चौंकाने वाली है। ग्लेशियर की ताजा तस्वीरें देखने के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि ग्लेशियर के आगे का करीब 50 मीटर हिस्सा भागीरथी (गंगा) के मुहाने पर गिरा हुआ है। हालांकि, गोमुख में तापमान कम होने के कारण यह हिस्सा पिघलना शुरू नहीं हुआ है।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कीर्ति कुमार के अनुसार ग्लेशियर की जो ताजा तस्वीरें और वीडियो उन्हें मिले हैं, उनसे पता चलता है कि गोमुख ग्लेशियर के दायीं ओर का हिस्सा आगे से टूटकर गिर पड़ा है। इसके कारण गाय के मुख (गोमुख) की आकृति वाला हिस्सा दब गया है। इस हिस्से में वैज्ञानिकों का दल वर्ष 2014 से यह महत्वपूर्ण बदलाव देख रहा था।
वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर के आगे का जो हिस्सा टूटकर गिरा है उसमें 2014 से बदलाव नजर आ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वैज्ञानिक चतुरंगी और रक्तवर्ण ग्लेश्यिर का गोमुख ग्लेशियर पर बढ़ता दबाव मानते हैं।
डॉ. कीर्ति कुमार के अनुसार 28 किलोमीटर लंबा और दो से चार किलोमीटर चौड़ा गोमुख ग्लेशियर तीन अन्य ग्लेशियरों से घिरा है। इसके दायीं ओर कीर्ति और बायीं और चतुरंगी एवं रक्तवर्ण ग्लेशियर हैं। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों का दल हर वर्ष मई से नवंबर तक ग्लेशियर का अध्ययन करता रहा है।
डॉ. कुमार के अनुसार हालांकि ग्लेशियरों में परिवर्तन एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन यह बदलाव महत्वपूर्ण है। जहां तक क्रेवास बनने का सवाल है तो वह ग्लेशियर के मूवमेंट के कारण होता है। उन्होंने बताया कि ग्लेशियर की संपूर्ण रिपोर्ट के लिए मई में वैज्ञानिकों की टीम फिर गोमुख जाकर अध्ययन करेगी। उल्लेखनीय है कि पंडित गोभवद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान की टीम वर्ष 2000 से गोमुख ग्लेशियर का अध्ययन कर रही है।- वार्ता