उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 की दो चरणों की मतदान प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है और पांच चरणों में मतदान होना अभी बाकी है। इन चुनावों में भाजपा अपने सामाजिक व जातिगत समीकरण की बदौलत उत्तर प्रदेश की सत्ता हथियाने के लिए पूरे प्रयास कर रही है। कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश में जो चुनाव होते थे उसमें दो पार्टियां अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। पहली सपा और दूसरी बसपा, इन दोनों पार्टियों में कड़ी टक्कर होती थी। जहां सपा को सवर्णों और पिछड़ा वर्ग में आने वाली कुछ जातियों का साथ मिलता था वहीं बसपा को निम्न तबके का सहयोग प्राप्त होता था। इन्हीं दोनों पार्टियों में से एक की जीत निश्चित थी।
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लेकिन इस बार के चुनावों में बीजेपी भी मोदी लहर के चलते उत्तरप्रदेश के चुनावों में अपनी अहम भूमिका निभा रही है। वहीं कांग्रेस और सपा एक साथ मैदान में उतर रही हैं। साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में अब दो पार्टियां आमने-सामने हैं। ये दो पार्टियां हैं बीजेपी और सपा। इन चुनावों में सपा को भाजपा का मुकाबला करने के लिए अतिपिछड़ों व अत्यन्त पिछड़ों का साथ मिलना जरूरी है।
पहले हुए चुनावों में समाजवादी पार्टी का ध्यान बीएटीएम समीकरण (ब्राह्मण, अहिर, ठाकुर, मुस्लिम) पर ही रहता था वहीं अबकी बार उसने जातिगत समीकरण के साथ ही सामाजिक समीकरण पर पूरा ध्यान दिया है। इस बार भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए सपा ने एमएवाई (मुस्लिम, अतिपिछड़ा/अत्यन्त पिछड़ा, यादव) समीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया है।
जहां पहले सपा अपने परंपरागत वोटों यानि यादव और मुस्लिमों को साथ लेकर चलते हुए अपनी जीत पक्की समझती थी। वहीं इन चुनावों में सपा को ये समझ में आ गया है कि वो अतिपिछड़ी, विशेषकर सर्वाधिक पिछड़ी जातियों के 50 प्रतिशत वोटरों को अनदेखा नहीं कर सकती है। क्योंकि जिस दल को इन वोटरों का साथ मिलेगा उसी के हाथों में यूपी की सत्ता होगी।
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इसके साथ ही भाजपा भी 2014 के लोक सभा चुनाव में सामाजिक समीकरण व अतिपिछड़ों की बदौलत अप्रत्याशित सफलता प्राप्त करने के बाद अब हर स्तर पर पिछड़ों, अतिपिछड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का पूरा प्रयास कर रही है। अगर उत्तर प्रदेश के वोटरों की बात की जाए तो यहां का जातिय समीकरण कुछ इस प्रकार का है .....
सामान्य वर्ग के वोट -20.95( ब्राह्मण, वैष्य और क्षत्रिय) :-
अन्य पिछड़े वर्ग के वोट - 54.05 (यादव/अहिर-19.40 यानी 10.46 प्रतिशत, अतिपिछड़े वर्ग लोधी, कुर्मी, जाट, गूजर, सोनार, अरख, गोसाई, कलवार आदि की आबादी 10.22 प्रतिशत जिसमें कुर्मी-7.46, लोध-6.06, जाट-3.60, गूजर-1.71, कलवार-0.70 प्रतिशत हैं। अत्यन्त पिछड़े वर्ग/ईबीसी की आबादी अन्य पिछड़े वर्ग में 61.59 प्रतिशत यानी कुल जनसंख्या में 33.34 प्रतिशत हैं जिसमें निषाद/कश्यप/बिन्द/किसान/रायकवार-12.91 प्रतिशत, पाल/बघेल-4.43, कुशवाहा/मौर्य/शाक्य/काछी/माली-8.56, मोमिन अंसार-4.15, तेली/साहू-4.03, प्रजापति-3.42, हज्जाम/नाई/सविता-3.01, राजभर-2.44, चैहान/नोनिया-2.33, बढ़ई/विश्वकर्मा-2.44, लोहार-1.81, फकीर-1.93, कन्डेरा/मंसूरी-1.61, कान्दू/भुर्जी-1.43, दर्जी-1.01, व अन्य अत्यन्त पिछड़ी जातियों की संख्या-12.97 प्रतिशत है।
अनुसूचित जाति - 24.94
अनुसूचित जनजाति - 0.06 प्रतिशत
विधान सभा चुनाव में 33 प्रतिशत से अधिक संख्या वाली अत्यन्त पिछड़ी निषाद, मल्लाह, केवट, लोध, कोयरी, नाई, हज्जाम, बारी, धीवर, कहार, बंजारा, माली, सैनी, लोहार, बढ़ई, राजभर, बियार, नोनिया, किसान, गोड़िया, तेली, तमोली, बरई आदि जातियां अपनी अहम भूमिका निभाएंगी। यानि पूरी दारोमदार अन्य पिछड़े वर्ग के हाथों में है, यहां पर अगर समाजवादी पार्टी केवल सवर्णों और यादव या अहीरों के वोट बैंक को ही केंद्रित करती है तो उसे केवल 30 प्रतिशत वोट ही मिलेंगे, वहीं जिस पार्टी को अन्य पिछड़ा वर्ग का पूरा सहयोग मिलेगा उसी के सिर पर जीत का सेहरा सजेगा।
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