सच्चा ‘सबका साथ, सबका विकास’ तभी जब आखिरी व्यक्ति लाभान्वित हो : भागवत

Samachar Jagat | Monday, 27 Mar 2017 06:56:01 AM
True 'Sabka Saath, Sabka Vikas' Only if Last Man is Benefited says Bhagwat

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मोदी सरकार के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे का आज समर्थन किया लेकिन साथ ही कहा कि इसकी असली परीक्षा तब होगी जब सबसे गरीब को उसका लाभ मिले।

आरएसएस सरसंघचालक भागवत ने यह सुनिश्चित करने की जरूरत पर भी जोर दिया कि विकास और पर्यावरण साथ साथ आगे बढ़ें। उन्होंने सरकार को परोक्ष रूप से संदेश देते हुए कहा कि एक वर्ग का विकास दूसरे को नजरंदाज करने की कीमत पर नहीं होना चाहिए क्योंकि विकास व्यापक आधारित प्रक्रिया होनी चाहिए।

भागवत ने विकास के स्वदेशी विकास के मॉडल पर यहां सातवां नानाजी देशमुख स्मारक व्याख्यान देते हुए कहा कि भारत कभी भी किसी पर हमला नहीं करता, वह स्वयं की रक्षा करने में सक्षम है।

उन्होंने ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे का उल्लेख करते हुए कहा कि यह एक ‘‘धार्मिक’’ नारा है लेकिन इस मामले में धर्म से उसके आधुनिक संकेतार्थ से भ्रमित नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि धर्म कुछ ऐसा है जो किसी व्यक्ति को उसका कर्तव्य निर्वहन के लिए प्रेरित करता है। धर्म एक संतुलन बनाने में मदद करता है ताकि सभी साथ चलें।
उन्होंने कहा कि नारे की असली परीक्षा तब होगी जब विकास का फल पंक्ति में आखिरी व्यक्ति तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि संघ के दूरदृष्टा दीन दयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी ‘अंत्योदय’ या आखिरी व्यक्ति के विकास की बात करते थे।

आरएसएस प्रमुख ने इसके साथ ही विकास और पर्यावरण को ‘‘मित्र’’ की तरह साथ होने की जरूरत पर बल दिया। पर्यावरण पर उनकी टिप्पणी महत्व रखती है क्योंकि सरकार ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि पर्यावरणीय चिंताएं और विकास परियोजनाएं साथ चलनी होंगी।

कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि विकास के लिए पर्यावरण और पारिस्थितिकी से समझौता किया गया।

भागवत ने कहा कि विकास के फल के लिए लोगों को कड़ी मेहनत करनी होगी। इसी तरह से चुनाव जीतने के लिए राजनीतिज्ञों को कड़ी मेहनत करनी होगी ताकि उनका रिपोर्ट कार्ड प्रभावशाली हो।

संघ प्रमुख ने विकसित देशों की इसके लिए आलोचना की जिन्होंने उनके अनुसार विकास के अपने माडल को विश्व के अन्य हिस्सों पर थोपा है।

इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने भी संबोधन दिया और याद किया कि किस तरह से देशमुख 1974 में जयप्रकाश नारायण को छात्र आंदोलन में लाए थे।



 

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