पटना। आज बिहार में शराबबंदी को एक वर्ष पूरा हो गया हैं। ये दिन बिहार के लिए एक यादगार पल से कम नहीं हैं। क्योंकि यहां पर 1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी की बात चली और 5 अप्रैल को बिहार में शराब बंद का सपना साकार हो गया। आपको बता दें कि इस बड़े फैसले की एक ओर तारीफ हुई तो दूसरी ओर निंदा का सामना भी करना पड़ा। सब झेलते हुए आखिरकार शराबबंदी ने अपने एक वर्ष पूरा कर लिया।
आज ये आवाज पूरे देश की आवाज है, बिहार के साथ ही देश के कई राज्यों ने माना कि शराबबंदी आवश्यक है। इसे देश के सबसे बड़े न्यायालय ने भी सही ठहराया और इसे लेकर कई आदेश भी दिए। शराबबंदी सामाजिक हित के लिए उठाया जाने वाला बहुत बड़ा कदम है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।
शराबबंदी से समाज बदला
शराबबंदी से समाज बदला है। महिलाओं में खुशहाली की बहार आईं। घरेलू हिंसा और घर में कलह के मामले कम हुएं। शराबबंदी बेहतर चीज है, इसे समर्थन दिए जाने की जरूरत है। शराबबंदी के बाद महिलाओं में सुरक्षा की भावना बढ़ी है। राज्य में 5 अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद इस धंधे में लगे कारोबारियों के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। कारोबारी अब इस धंधे को छोडक़र दूसरे कारोबार में जुट गए हैं।
शराब तस्कर बने चुनौती
नीतीश कुमार जहां शराबबंदी को पूरे देश में लागू करवाने की बात कर रहे हैं तो वहीं बिहार में लगातार शराब तस्कर पुलिस के लिए चुनौती बने हुए हैं। चोरी-छिपे रोज शराब की तस्करी जारी है। सरकार और प्रशासन की कवायद के बाद भी तस्करों पर लगाम लगाना मुश्किल होता जा रहा है।
अवैध शराब का कारोबार जोरों पर
पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद बिहार में शराब के अवैध कारोबार पर पूरी तरह अंकुश नहीं लग पाया है। कई जगह चोरी-छिपे पड़ोसी राज्यों और नेपाल से शराब लाकर बेची जा रही है। छापेमारी में कई जगह मिट्टी में दबाकर रखी गई शराब की बोतलें मिली हैं तो कहीं तालाबों तथा कुंए के भीतर से शराब की बोतलें बरामद हो रही हैं।
बिहार में शराबबंदी 5 अप्रैल, 2016 को लागू हुई थी और संशोधित नया कानून 2 अक्टूबर, 2016 को लागू हुआ था। शराबबंदी से बिहार सरकार को वार्षिक 4500 करोड़ के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर देशव्यापी अभियान चलाना चाहते हैं, लेकिन अब देखना यह होगा कि नीतीश कुमार की यह मुहिम आगे सफल हो पाती हैं या नहीं?