नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय एएमयू के कुलपति को हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई एक अन्य पीठ के सामने लंबित इसके अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ी याचिका के साथ होगी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एएमयू दावा कर सकता है कि कुलपति चुनने की उसकी प्रक्रिया ‘‘हाईजैक’’ नहीं की जा सकती क्योंकि यह ‘‘अल्पसंख्यक संस्थान’’ है।
लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त जमीरूददीन शाह की कुलपति के रूप में नियुक्ति को लेकर एएमयू की चयन प्रक्रिया की आलोचना करने वाली प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय के ‘‘अल्पसंख्यक संस्थान’’ होने के मुद्दे पर शाह को हटाने की मांग वाली याचिका के साथ विचार किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी कुलपति के लिए योग्यता तय कर सकता है लेकिन वह चयन प्रक्रिया पर फैसला नहीं कर सकता क्योंकि विश्वविद्यालय दावा कर सकता है कि वह अल्पसंख्यक संस्थान है और इसलिए इसकी प्रक्रिया को हथियाया नहीं जा सकता।
पीठ ने कहा कि बेहतर होगा अगर विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ी याचिका पर विचार कर रही पीठ द्वारा इस वर्तमान याचिका पर भी विचार किया जाए।
इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल थे।
अदालत ने शाह को कुलपति के पद से हटाने की मांग वाली याचिका दायर करने वाले एएमयू के पूर्व छात्र सैयद अबरार अहमद की ओर से पेश प्रशांत भूषण की इस दलील को स्वीकार नहीं किया कि इस मामले का विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित मामले से कोई लेना देना नहीं है।
तीन घंटे की सुनवाई के बाद पीठ ने कहा कि वह इस मामले को न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की एक अन्य पीठ के पास भेजेगी जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा छीनने के फैसले को चुनौती देने वाली विश्वविद्यालय की अपील पर पहले से सुनवाई कर रही है।
पीठ ने कहा कि इस याचिका पर 10 जनवरी 2017 को अन्य याचिका के साथ सुनवाई होगी।