राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ी हर वो जानकारी जो आप जानना चाहते हैं, पढ़ें...

Samachar Jagat | Tuesday, 21 Mar 2017 03:57:29 PM
Read When and what happened Ram temple and Babri Masjid

राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद एक ऐसा विवाद है, जिसकी आंच में भारतीय राजनीति आजादी के बाद से ही झुलसती रही है। लेकिन लगभग दो दशक पूर्व इस आग में घी डालने के बाद इस विवाद ने विकराल रुप धारण कर लिया।

6 दिसंबर, 1992 के दिन में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा ढहा दिया गया था, जिसके बाद देशभर में स्थिति तनावपूर्ण हो गई। इसके बाद यह विवाद कोर्ट जा पहुंचा और आज तक इस मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है।

इस मामले का निदान कब होगा किसी को नहीं पता लेकिन, समय-समय पर इस मामले में नए-नए विवाद सम्मिलित हो जाते हैं जिससे यह विवाद फिर से चर्चाओं में आ जाता है। 

मंगलवार को देश के शीर्ष अदालत ने इस मसले पर सुनवाई करते हुए कहा कि इस मसले को दोनों पक्षकार आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करें। सुप्रीम कोर्ट का बयान आने के बाद एक नई बहस ने जन्म ले लिया है। 

इस विवाद को लेकर लोगों में मन में जिज्ञासा रहती है कि आखिर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद है क्या? इस विवाद की चिंगारी कहां से निकली और कैसे इस विवाद ने इतना बड़ा रुप धारण कर लिया?

इन सभी सवालों के जवाब पर से हम आज पर्दा उठाने जा रहे है। पढ़िए- राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ी हर वो ख़बर जो आप जानना चाहते हैं...

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद में कब-कब, क्या-क्या हुआ...

1528 में अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसका नाम बाबरी मस्जिद पड़ा। 

1853 में हिंदुओं ने आरोप लगाया की भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ है। इस मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई। 

1859 में ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885 में मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर, 1949 को करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी, 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी। उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की। 

5 दिसंबर, 1950 को महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया। 

17 दिसंबर, 1959 को निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर, 1961 को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्म स्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। इसके लिए एक समिति का भी गठन किया गया। 

1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

जून 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने विश्व हिंदू परिषद को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया। 

1 जुलाई, 1989 को भगवान राम लला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

9 नवंबर, 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दे दी।

25 सितंबर, 1990 को बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे भड़क गए।

नवंबर 1990 में आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सिंह ने वाम दलों और बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

अक्टूबर 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर, 1992 को हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को ढहा दिया, जिसके बाद देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए। इसी दौरान जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया। 

16 दिसंबर, 1992 में मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम. एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

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जनवरी 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था।

अप्रैल 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003 में इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। वहीं मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे। 

सितंबर 2003 में एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए।

अक्टूबर 2004 में आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की बीजेपी की प्रतिबद्धता को एक बार बार फिर दोहराया।

जुलाई 2005 में संदिग्ध इस्लामी आतंकवादियों ने विस्फोटकों से भरी एक जीप का इस्तेमाल करते हुए विवादित स्थल पर हमला किया। सुरक्षा बलों ने पांच आतंकवादियों को मार गिराया।

जुलाई 2009 में लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी। 

28 सितंबर, 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया। 

राम मंदिर मुद्दाः दोनों पक्ष आपसी सहमति से निकाले हल- SC

30 सितंबर, 2010 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

21 मार्च, 2017 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की।  चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर ने कहा है कि अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।  
 



 

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