राजीव गांधी पुण्यतिथि विशेष: श्रीपेरंबदूर..21 मई का वो काला दिन

Samachar Jagat | Sunday, 21 May 2017 10:51:07 AM
rajiv gandhi death anniversary 21 may

20 अगस्त 1944 को मुंबई में जन्मे इंदिरा गांधी के सुपुत्र और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी अपनी शख्सियत से अपनी पार्टी ही नहीं बल्कि पूरे देश में बहुत लोकप्रिय थे। लोग उन्हें बहुत चाहते थे। देश के अलावा विदेशी मीडिया भी उनकी सादगी भरी शख्सियत, काबिलियत के अलावा उनके कामों का लोहा मानती थी। 1984 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को आम चुनाव में भारी बहुमत मिला।

जिसके बाद वो देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने। हालांकि 1989 में उन्हें आम चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। 1991 में आम चुनाव के दौरान राजीव गांधी कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत करने लगे। 1991 में आम चुनाव के दौरान पूरे देश में प्रचार अभियान में जुटे राजीव गांधी इस कड़ी के तहत दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले।

21 मई को चुनाव प्रचार के कार्यक्रम के दौरान जब राजीव तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक सभा को संबोधित करने पहुंचे तो वहां उनके स्वागत के लिए खड़ी महिला ने मानव बम से उनकी हत्या कर दी। हत्या के  बाद जांच शुरु हुई। जांच की सिरा वहां मौजूद पत्रकार के कैमरे से मिला। कैमरे में सभी हत्यारे कैद हो गए थे। तस्वीरों के आधार पर जगह-जगह ताबड़तोड़ छापे मारे गए। आखिर जांच में पता चला कि वो सभी लिट्टे से संबंधित थे। जब एक ठिकाने पर राजीव के हत्यारों का पता चला तो वहां छापेमारी की गई।

छापे में सात आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। इस हमले का मास्टमाइंड शिवरासन बताया गया, जिसने गिरफ्तारी से पहले अपने सहयोगी के साथ जहर खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। राजीव की हत्या के साल भर के अंदर कोर्ट में चार्जशीट कोर्ट में फाइल कर दी गई। कोर्ट में सभी को फांसी की सजा सुनाई। टाडा कोर्ट ने एजी पेरारिवलन को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। इस कांड में पेरारिवलन के अलावा छह अन्य लोगों मुरुगन, संतन, नलिनी, रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन को दोषी करार दिया गया था। नलिनी की सजा को राजीव गांधी की पत्नि सोनिया गांधी की अपील पर उम्रकैद में बदल दिया गया था।

सजा के बाद इन्होंने दया याचिका भी लगाई। लेकिन दया याचिका में देरी के चलते कोर्ट ने इनकी फांसी को भी उम्र कैद में बदल दिया। लेकिन 2015 में तमिलनाडू की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने राजीव गांधी के सभी हत्यारों की उम्रकैद की सजा माफ करते हुए उन्हें रिहा करने का फैसला लिया। जिसके बाद मामला फिर मीडिया की सुर्खी बन गया।

केंद्र ने इस पर कड़ा रुख इख्तियार करते हुए। जयललिता के फैसले का विरोध किया। मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसके बाद जयललिता सरकार ने कोर्ट में कहा कि सभी आरोपी 25 साल से ज्यादा की सजा काट चुके हैं और उन्हें अब रिहाई का हक है। लेकिन, कोर्ट में केंद्र के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि जब किसी मामले की जांच केंद्र के हाथ में हो तो ऐसे में केंद्र की अनुमति के बिना अपराधियों की रिहाई नहीं हो सकती।

आखिर में जयललिता को कोर्ट के आदेश के आगे झुकना पड़ा। राजीव गांधी के हत्यारे अब जेल में अपनी जिंदगी के बचे दिन सजा के तौर पर गुजार रहे हैं। हालांकि, इस मामले पर राहुल गांधी ने कहा था कि रिहाई का अंतिम फैसला राज्य सरकार को करना है। 
 



 

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