नई दिल्ली। माकपा 500 और 1000 रूपए के पुराने नोट बंद करने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चल रही कानूनी लड़ाई में कूदने वाली पहली राजनीतिक पार्टी बन गई है ।
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के जरिए पार्टी की ओर से दाखिल याचिका में 18 नवंबर को शीर्ष न्यायालय की ओर से की गई उस टिप्पणी की झलक मिलती है जिसमें कहा गया था कि नोटबंदी से ‘‘दंगे जैसे हालात पैदा हो सकते हैं ।’’
इससे पहले, भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य विनय विश्वम ने 500 और 2000 रूपए के नए नोटों के डिजाइन में देवनागरी लिपि के इस्तेमाल को आधार बनाते हुए नए नोटों की संवैधानिक वैधता को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी थी । हालांकि, विनय ने यह याचिका व्यक्तिगत हैसियत से दाखिल की थी ।
माकपा की ओर से दाखिल याचिका में दावा किया गया कि नोटबंदी के कदम से दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए गए हैं । पार्टी ने पिछले तीन साल में सरकारी बैंकों की ओर से 1.14 लाख करोड़ रूपए के फंसे हुए कर्ज एनपीए माफ करने का मुद्दा भी याचिका में उठाया है ।
याचिका के मुताबिक, ‘‘लाखों करोड़ रूपए के कर्ज अब भी फंसे हुए हैं । सरकार ने माफी के लाभार्थियों और बड़े कर्जदारों, व्यक्तियों एवं संस्थाओं दोनों, के नाम सार्वजनिक नहीं किए हैं ।’’
वकील पी वी दिनेश के जरिए दाखिल अर्जी में कहा गया, ‘‘नोटबंदी ने देश में दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए हैं । सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि आम लोगों के पास रोजमर्रा की जरूरतों और स्वास्थ्य से जुड़ी आपात स्थितियों में भुगतान के लिए पर्याप्त धन तुरंत उपलब्ध रहे । देश बिल्कुल ठहर सा गया है ।’’