जाधव को मौत की सजा दिया जाना सैन्य कानून, परंपराओं का मजाक: विशेषज्ञ

Samachar Jagat | Sunday, 16 Apr 2017 01:12:40 PM
jadhav to be sentenced to death Junk of military law and traditions

नई दिल्ली। सैन्य कानून विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय नौसेना के पूर्व कर्मी कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा मृत्युदंड दिया जाना अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य सैन्य परंपराओं और कानूनों का मजाक है तथा स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कूटनीतिक एवं ‘बैक चैनल’ प्रयास तेज किए जाने चाहिए। सेना की जज एडवोकेट जनरल जेएजे शाखा से सेवानिवृत्त हुए मेजर जनरल नीलेन्द्र कुमार ने भाषा से बातचीत में कहा कि मान्य सैन्य परंपराओं के अनुसार अन्य देशों के जासूसों को मारा नहीं जाता। प्राय उन्हें प्रताडि़त कर या बेइज्जत कर उनके मूल देश को लौटा दिया जाता है। 

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्य सैन्य परंपराओं के अनुसार सैन्य अदालतों में केवल वर्तमान और भूतपूर्व सैनिकों पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है। जाधव पाकिस्तानी सेना में तो थे नहीं। इसलिए उन पर सैन्य अदालत में मुकदमा चलाया जाना अफलातूनी है। क्या सैन्य अदालत किसी को मृत्युदंड दे सकती है, इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि बिल्कुल दे सकती है। किन्तु देखने वाली बात यह है कि यह सजा किस अपराध के लिए दी जा रही है।

यदि कोई सैनिक शराब पीकर आया तो इस अपराध के लिए क्या उसे मृत्युदंड दिया जा सकता है। उन्होंने कहा, पहली बात संगीन अपराध नहीं समझ आता। दूसरी बात सैन्य अदालत की कार्यवाही समझ में नहीं आती। तीसरी बात कि भारत सरकार द्वारा कहने के बावजूद राजनयिक मदद काउंसल एक्सेस नहीं देने की बात समझ में नहीं आती। उन्होंने कहा कि जहां तक संगीन अपराध की बात है, हमने कसाब पर मुकदमा चलाया। उसे वकील दिया गया।

उसके मामले में भी अपील हुई। किन्तु जाधव के मामले में सैन्य अदालत में कार्यवाही चलाई गई और पाक सेना प्रमुख ने उसके निर्णय को अनुमोदित कर दिया। यह बात गैर कानूनी है, प्रचलित अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। इसमें मानवाधिकार का सीधा हनन है। 

यह पूछने पर कि क्या इस मामले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जा सकता है, कुमार ने कहा कि इस मामले को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय और इंटरनेशनल कोर्ट आफ जस्टिस में नहीं उठाया जा सकता। लेकिन इसमें सामरिक, कूटनीतिक और सैनिक तरीके से भारत पाकिस्तान की बांह मरोड़ सकता है।

जैसे मीडिया में एक सुझाव आया है कि भारत पाकिस्तान के नागरिकों को वीजा देने की प्रक्रिया धीमी कर सकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के सैन्य कानूनों में यह स्थापित परंपरा है कि सैन्य अदालतों के फैसलों के पहले सेना के भीतर और फिर सरकार के स्तर पर अपील की जा सकती है। भारत में कोर्ट मार्शल की अपील फौज के अंदर करते हैं जिसको कहा जाता है, पोस्ट कनफर्मेशन पेटीशन। सात आठ वर्ष पहले हमारे यहां सशस्त्र बल न्यायाधिकरण गठित किया गया था।

 इसमें यदि केन्द्र सरकार कोई अपील रद्द करती है तो आप सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में जा सकते हैं। यहां भी यदि आपको न्याय नहीं मिला तो आप उच्चतम न्यायालय में जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान अपने को आधुनिक देश कहता है तो उसे न्याय के नाम पर इस तरह का खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद हिटलर के सहयोगी, जिन पर यहूदियों के नरसंहार का आरोप था, उन पर मुकदमा चलाने के लिए भी न्यूरबर्ग न्यायाधिकरण बनाया गया था।

यहां तो जाधव ने कोई नरसंहार, कोई रासायनिक या परमाणु हथियारों से हमला नहीं किया। यह तो ऐसी ही बात हुई कि कोई छात्र फीस न दे या नकल करता हुआ पकड़ा जाए तो आप कहें कि हम उसे फांसी दे देंगे। सेना की ही जेएजे शाखा से सेवानिवृत्त हुए लेफ्टीनेंट कर्नल आदित्यनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि आम तौर पर अन्य देशों के जो भी जासूस पकड़े जाते हैं उन पर असैन्य कानूनों, दंड प्रक्रिया संहिता के तहत मुकदमा चलाया जाता है।



 
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