नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग की मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली प्रणाली इतनी सक्षम नहीं है कि वह महत्वूर्ण समुद्रीय घटनाओं का पता लगा सके। यही वजह है कि उसे दक्षिण पश्चिमी मानसून के कारण होने वाली बरसात के अनुमान को ''औसत से अधिक" से बदलकर ''औसत" करना पड़ा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में सचिव एम राजीवन ने कहा कि भविष्य में बेहतर अनुमान लगाया जा सके इसलिए मौसम विभाग अपनी वर्तमान प्रणालियों में जरूरी बदलाव करेगा।
वर्तमान में मौसम विभाग समुद्र में आने वाले बदलावों को समझने के लिए नेशनल सेंटर्स फॉर इन्वर्मेंटल प्रीडिक्शन एनसीईपी क्लाइमेट फोरकास्ट सिस्टम वर्जन दो सीएफएसवी-2 का इस्तेमाल करता है। यह प्रणाली अमेरिका से ली गई है। लेकिन अब इसमें भारत के मौसम विभाग की जरूरत के मुताबिक बदलाव किए जाएंगे।
मौसम विभाग ने शुरूआती अनुमान में कहा था कि दक्षिण पश्चिमी मानसून की बारिश ''औसत से अधिक" रहने की उम्मीद है। सितंबर में ''अत्याधिकÓÓ बारिश होने का अनुमान जताया गया था लेकिन इसमें से कुछ भी सच नहीं निकला।
विभाग ने यह अनुमान अल नीनो की वजह से लगाया था। अल नीनो प्रशांत महासागर के जल का तापमान कम होने से जुड़ी एक समुद्रीय घटना है जिसके परिणामस्वरूप भारतीय उप महाद्वीप में मानसून अच्छा रहता है। मौसम विभाग का अनुमान था कि अल नीनो पूरे उफान पर रहेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुविय नेगेटिव इंडियन ओशन डायपोल या आईओडी की एक अन्य घटना हुई जिसे अल नीनो भी कहा जाता है। इसमें हिंद महासागर के पानी का तापमान बढ़ जाता है पानी गर्म हो जाता है। नकारात्मक आईओडी का मानसून पर खराब प्रभाव पड़ता है।
राजीवन ने बताया, ''अल नीनो के चलते अच्छी बारिश हो सकती थी लेकिन इसी बीच हिंद महासागर का तापमान बढ़ गया। हिंद महासागर द्विध्रुवीय नकारात्मक था। प्रणाली इसका पता नहीं लगा सकी। प्रणाली में समस्या है और हिंद महासागर में आने वाले बदलावों का अनुमान लगाने में यह अच्छी नहीं है।
उन्होंने बताया कि सीएफएसवी-2 मॉडल में बदलाव किए जाएंगे ताकि वे छोटे-छोटे बदलावों का भी पता ला सके क्योंकि छोटे बदलाव भी बड़ा अंतर ला सकते हैं।
भाषा