इलाहाबाद हाई कोर्ट का इतिहास और ऐतिहासिक फैसले

Samachar Jagat | Thursday, 27 Apr 2017 12:49:27 PM
History of Allahabad High Court And Etihasheh decisions

न्यायालय एक ऐसी जगह है जहां लोगों को न्याय मिलता है, जहां सच और झूठ का फैसला होता है। न्यायालय के अंदर सब समान होते है और यहां पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होता। चाहे फिर देश के सबसे बड़े पद पर बैठा आदमी हो या फिर एक छोटे से गांव का, यहां सबके साथ समान न्याय होता है।

कहते है कानून अंधा होता है। लेकिन देखा जाए तो न्यायालय जब अपना फैसला सुनाता है तो वह सही मायने में सच और झूठ को तराजू में समान तोल कर ही अपना फैसला देता है और वहीं सर्वमान्य भी होता है।

आज हम बात कर रहे है देश के एक ऐसे न्यायालय के बारे में जिसका अपना एक इतिहास है और उसके कई ऐतिहासिक फैसले भी और वो न्यायालय है इलाहाबाद हाईकोर्ट, जो अपने आप में एक पहचान रखता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्थापना को 150 वर्ष पूरे हो चुके है और उसकी इमारत को 100 वर्ष। इसी कड़ी में पिछले महीने ही देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और देश के हर व्यक्ति को न्याय दिलाने की बात कही थी।

कब हुई थी स्थापना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ब्रिटिश राज में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के अन्तर्गत आगरा में 17 मार्च 1866 को स्थापित किया गया था। उत्तरी-पश्चिमी प्रान्तों के लिए स्थापित इस न्यायाधिकरण के पहले मुख्य न्यायाधीश सर वाल्टर मॉर्गन थे। सन 1869 में इसे आगरा से इलाहाबाद स्थानान्तरित किया गया। 11 मार्च 1919 को इसका नाम बदल कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय रख दिया गया।

2 नवम्बर 1925 को अवध न्यायिक आयुक्त ने अवध सिविल न्यायालय अधिनियम 1925 की गवर्नर जनरल से पूर्व स्वीकृति लेकर संयुक्त प्रान्त विधानमण्डल द्वारा अधिनियमित करवा कर इस न्यायालय को अवध चीफ कोर्ट के नाम से लखनऊ में प्रतिस्थापित कर दिया। काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक मुकद्दमें का निर्णय अवध चीफ कोर्ट लखनऊ में ही दिया गया था।

25 फरवरी 1948 को, उत्तर प्रदेश विधान सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल द्वारा गवर्नर जनरल को यह अनुरोध किया कि अवध चीफ कोर्ट लखनऊ और इलाहाबाद हाई कोर्ट को मिलाकर एक कर दिया जाए। इसका परिणाम यह हुआ कि लखनऊ और इलाहाबाद के दोनों प्रमुख और उच्च न्यायालयों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय नाम से जाना जाने लगा।

सबसे अधिक रहे मुस्लिम न्यायाधीश

अपने बेबाक और ऐतिहासिक फैसलों के लिए प्रसिद्ध इलाहाबाद हाई कोर्ट से जुड़े मुस्लिम न्यायाधीशों ने देश के कानूनी विभाग में एक इतिहास रचा है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कानूनी सेवाए शानदार रही हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट को यह गौरव भी प्राप्त है कि यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम न्यायाधीशों ने अपने कानूनी कर्तव्यों का पालन किये हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के डेढ़ सौ वर्ष और मौजूदा इमारत के सौ साल पूरे होने पर आज भी जस्टिस महमूद और सर शाह सुलैमान की असाधारण कानूनी सेवाए यहाँ की शानदार विरासत में शुमार की जाती हैं। ये एशिया का सबसे बड़ा न्यायालय है।

हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर

वर्ष 1971 में जब लोकसभा चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को शानदार जीत हासिल हुई थी। वो रायबरेली से 1 लाख से ज्यादा वोटों से जीती थीं लेकिन उनसे चुनाव हारने वाले समाजवादी नेता राजनारायण ने चुनाव परिणाम को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दे डाली। उन्होंने आरोप लगाया था कि इंदिरा गाँधी ने गलत तरीके अपनाते हुए सरकारी मदद लेकर चुनाव जीता है। इंदिरा गाँधी को अदालत में पेश होना पड़ा। 12 जून 1971 को न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी का चुनाव परिणाम निरस्त कर अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया था।

जाति आधारित रैलियों पर रोक

जुलाई 11, 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में पूरे उत्तर प्रदेश में जातियों के आधार पर होने वाली राजनीतिक दलों की रैलियों पर रोक लगा दी थी। न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह और न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग और चार राजनीतिक दलों को नोटिस भी जारी किए थे। 

कल्याण सिंह सरकार की बर्खास्तगी पर लगाई रोक

23 फरवरी 1998 को यूपी के तत्कालीन राज्यपाल रमेश भंडारी ने कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त करते हुए कांग्रेस नेता जगदम्बिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। और उस समय ये यूपी सियासत में भूचाल सा था एक ही प्रदेश के दो मुख्यमंत्री बन गए थे। उस दौरान इसके खिलाफ डाॅ. नरेंद्र गौड़ ने इलाहबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने कल्याण सिंह की बर्खास्तगी पर रोक लगा दी थी। 

तीन तलाक पर 

पिछले साल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था कि यह प्रथा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है। उच्च न्यायालय का यह भी मानना था कि कोई भी पर्सलन लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। न्यायमूर्ति सुनील कुमार ने अपने फैसले में यहां तक कह डाला था कि इस्लामिक कानून तीन तलाक पर गलत व्याख्या कर रहा है। हालाँकि, इस फैसले को भी उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है।

राम मंदिर मुद्दे पर फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2010 को विवादित राम मंदिर मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को रामजन्मभूमि करार देते हुए विवादित जमीन का एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बांटने का फैसला दिया था। हालाँकि, इस हाईकोर्ट के फैसले को देश के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जहां केस अभी भी जारी है।

नेताओं और अधिकारियों के बच्चों पर

अगस्त 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपनी ऐतिहासिक टिप्पणी में कहा था कि अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। ताकि सरकारी शिक्षा पद्धति में सुधार लाया जा सके। यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने खस्ताहाल प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पर नाराजगी जाहिर करते हुए दी थी। 



 

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