जानिए, भारतीय मुद्दा का बंद होने का इतिहास!

Samachar Jagat | Thursday, 17 Nov 2016 12:05:54 PM
Here issue of the closure of history!

इंटरनेट डेस्क। 8 नवंबर 2016 से पहले भी बड़े नोट बंद किए गए थे, ये नोट वर्ष 1978 में जब बंद किए गए थे जब मोरार जी देसाई भारत के प्रधानमंत्री थे। तब भी लोगों की ऐसी ही लंबी-लंबी कतारंे लगानी पड़ी थी। लेकिन कुछ वक्त बाद इस समस्या का हल हो गया था और पहले के जैसे ही लोग जीवन व्यापन करने लगे थे।

इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बंद किए गए 500 और एक हजार के नोट भी कुछ दिनों की समस्या है, फिर बाजार में नए नोट आएंगे तो भीड़ खुद ही कम हो जाएंगी। मोदी सरकार के 500 और हजार रुपए के पुराने नोटों को बंद करने के फैसले की काफी चर्चा हो रही है और इसे 'क्रांतिकारी फ़ैसला' बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इससे काले धन से लड़ाई में सरकार को बड़ी कामयाबी मिलेगी। लेकिन यह  पहला मौका नहीं है जब बड़े नोट बंद किए गए हैं।

कब-कब हुए नोट बंद, डालिए एक नजर
वर्ष 1946 में में भी हजार रुपए और 10 हजार रुपए के नोट वापस लिए गए थे। फिर 1954 में हजार, पांच हज़ार और दस हज़ार रुपए के नोट वापस लाए गए। उसके बाद जनवरी 1978 में इन्हें फिर बंद कर दिया गया। 1978 में जब यह नोट वापस लिए गए उसके पीछे एक दिलचस्प वाकया है। तब जनता पार्टी गठबंधन को सत्ता में आए एक वर्ष ही हुआ था।

सरकार ने 16 जनवरी को एक अध्यादेश जारी कर हजार, पांच हजार और 10 हजार के नोट वापस लेने का निर्णय किया। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ऐतिहासिक दस्तावेज़ (थर्ड वॉल्यूम) में पूरी प्रक्रिया का ब्यौरा दिया गया है। 14 जनवरी 1978 को रिज़र्व बैंक के चीफ़ अकाउटेंट ऑफि़स के वरिष्ठ अधिकारी आर जानकी रमन को फ़ोन कर दिल्ली बुलाया गया। जब रमन दिल्ली पहुंचे तो उनसे एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सरकार बड़े नोट वापस लेने का मन बना चुकी है और इससे संबंधित ज़रूरी अध्यदेश वो एक दिन में बनाएं। 

1978 में पटेल ही गर्वनर थे, आज भी पटेल ही गवर्नर है..
इस दौरान रिज़र्व बैंक के मुंबई स्थित केंद्रीय कार्यालय  से किसी भी तरह की बातचीत के लिए सख्त मना किया गया क्योंकि इससे बेवजह की अटकलों के फैलने का डर था। तय वक्त पर यह अध्यादेश तैयार हो गया और इसे तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया।

16 जनवरी की सुबह नौ बजे आकाशवाणी के बुलेटिन में इन बड़े नोटों के बंद होने की ख़बर का प्रसारण हो गया। अध्यादेश के अनुसार अगले दिन यानी 17 जनवरी को सभी बैंकों के बंद रहने का ऐलान कर दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोट पर बैन लगाकर एक बड़ा कदम उठाया लेकिन यह पहली बार नहीं है कि लोगों को इस तरह लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ रहा है। 

38 साल पहले भी बैंकों के बाहर ऐसा ही था नजारा
38 साल पहले भी बैंकों के बाहर ऐसा ही नजारा देखने को मिला था। 1978 में प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई के कार्यकाल में 5000 और 10,000 के नोट बंद हुए थे। मोरार जी देसाई भी गुजराती थे। इसे इत्तेफाक ही कहा जा सकता है कि पीएम मोदी भी गुजरात से हैं जिन्होंने नोटबंदी पर बड़ा फैसला लिया है। मोरार जी देसाई के कार्यकाल में आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल थे और अब उर्जित पटेल हैं। मोरार जी देसाई ने यह फैसला काले धन और उससे चल रही समांनतर अर्थव्यवस्था को रोकने के लिए किया गया था।

इस फैसले को हाई डेमोमिनेशन बैंक नोट एक्ट 1978 के तहत लागू किया गया था। इस कानून के तहत 16 जनवरी 1978 के बाद इन नोटों की मान्यता खत्म कर दी गई। बड़ी कीमत वाले नोटों को ट्रांसफर या रिसीव करने पर बैन लगा दिया गया। इसके साथ ही सभी बैंकों और सरकारी संस्थानों को रिजर्व बैंक को अपने पास मौजूद बड़े नोटों की जानकारी देनी थी। जिन लोगों के पास 5 और 10 हजार के नोट थे, वे बैंक में जाकर 24 जनवरी 1978 तक नोट एक्सचेंज करवा सकते थे।

वापस अटल जी कार्यालय में हुए शुरू
हालांकि 1000 के नोट दोबारा अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में वापस आए। वहीं 2000 का नोट लाने वाले नरेंद्र मोदी पहले पीएम हैं। बता दें कि नोटबंदी के बाद से ही देश में अफरा-तफरी का माहौल है। पीएम मोदी ने 8 नवंबर की रात को अचानक नोट बंद की घोषणा की तो लोगों को नोट बदलवाने की चिंता बढ़ गई हालांकि सरकार लोगों को कुछ राहत दी है कि वे सरकारी अस्पताल, रेलवे, बस टिकट, पैट्रोल पंप पर 24 नवंबर तक पुराने नोटों को चला सकते हैं।



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.