नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति का मार्गदर्शन करने वाले दस्तावेज मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर की सामग्री को लेकर न्यायपालिका के साथ टकराव के बीच सरकार ने बुधवार को कहा कि न्यायिक नियुक्तियों में दखलअंदाजी करने की उसकी कोई मंशा नहीं है।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आप कहते हैं कि हम हर जगह हस्तक्षेप करते हैं। हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है। बीआर अंबेडकर से संविधानसभा की बहस के दौरान पूछा गया था। उन्होंने कहा था कि हम किसी एक हाथ में नियुक्ति का अधिकार देना नहीं चाहते हैं। चाहे यह प्रधानमंत्री हों, मंत्री परिषद् या भारत के प्रधान न्यायाधीश हों। यह भारत के संविधान की भावना है।
‘‘....यह कहता है कि राष्ट्रपति भारत के प्रधान न्यायाधीश की सलाह पर न्यायाधीशों की नियुक्त करेगा।’’
वह ‘एजेंडा आजतक’ पर एक सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्यों चुनी हुई सरकारें न्यायिक नियुक्तियों में अपनी मुख्य भूमिका चाहती हैं?
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग अधिनियम को पलटने संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले का जिक्र करते हुए प्रसाद ने कहा कि सरकार ने ईमानदारी से फैसले को स्वीकार किया लेकिन साथ ही इस पर कुछ आपत्ति है।
राष्ट्रीय नियुक्त आयोग अधिनियम में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली कॉलेजियम प्रणाली को रद्द करने का प्रावधान था।
उन्होंने न्यायपालिका को याद दिलाया कि निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के करीब 5,000 पद खाली हैं और यह उच्च न्यायालयों का कर्तव्य है कि वे इन्हें भरें और केंद्र को इसमें कोई भूमिका नहीं निभानी है।