नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, केंद्रीय बजट (2017-18) को टालने की मांग करने वाली याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि बजट नया वित्त वर्ष (एक अप्रैल से) शुरू होने से पहले पेश किया जाएगा, न कि वित्त वर्ष के दौरान। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति एन.वी.रमन्ना तथा न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, केंद्र द्वारा ऐसा कुछ किया जाता है, जिससे राज्यों में होने वाले चुनाव प्रभावित होते हैं, तो निर्वाचन आयोग कदम उठाएगा। ..लेकिन क्या केंद्रीय बजट को ही टाल देना चाहिए? जनहित याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए किसी भी तर्क का कोई मतलब नहीं निकलता। केंद्र सरकार ने बजट फरवरी के अंत में पेश करने की जगह एक फरवरी को पेश करने का फैसला किया है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता एम.एल.शर्मा ने तर्क दिया कि केंद्रीय बजट मतदाताओं को प्रभावित करेगा और इसलिए स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव प्रभावित होंगे। इसके बाद पीठ ने उन्हें एक ठोस उदाहरण देने को कहा, जो यह दर्शाता हो कि बजट से मतदाताओं के मस्तिष्क व राज्य में होने वाले चुनावों के नतीजे पर प्रभाव पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अगर मार्च, अप्रैल व मई महीने में लगातार राज्यों में चुनाव होते, और याचिकाकर्ता अधिवक्ता के तर्क पर गौर किया जाए, तो बजट पेश ही नहीं होगा। यह राज्य का चुनाव है और इसका केंद्रीय बजट से कोई लेना-देना नहीं है। याचिका में दिए गए तर्क कि बजट का इस्तेमाल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में फायदे के लिए किया जा सकता है, को दरकिनार करते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर ने कहा, अगर लोकतंत्र की व्याख्या उस तरह से की जाए, जैसा आप कर रहे हैं, तो केंद्र में तो सत्ताधारी पार्टी होगी ही नहीं।