नई दिल्ली। गर्भावस्था के दौरान पत्नी द्वारा संबंध बनाने से मना करना पति पर क्रूरता नहीं है। दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि यदि पत्नी सुबह देर से सोकर उठती है और बिस्तर पर चाय की फरमाइश करती है तो स्पष्ट है कि वह आलसी है और ‘आलसी होना’ निर्दयी अथवा क्रूर होना नहीं है।
दिल्ली की परिवाल अदालत ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति की तलाक याचिका ठुकराते हुये यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा, यह कहना कि पत्नी ने अगस्त 2012 के बाद संबंध बनाने से इंकार कर दिया और यदि यह सही भी है तो उसे इस बात से समझना होगा कि मई 2012 के तीसरे सप्ताह में वह गर्भवती थी।
न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और प्रतिभा रानी की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुये कहा, गर्भ में बच्चा होने के समय जाहिर है कि उसके लिए संबंध बनाना असुविधाजनक रहा होगा और यदि यह मान लिया जाए कि गर्भावस्था का समय बढऩे के साथ साथ उसने अपने पति के साथ पूरी तरह संबंध बनाना छोड़ दिया तो इससे उसकी क्रूरता साबित नहीं होती है।
अदालत ने कहा, माना लिया जाये कि उसकी पत्नी देर से सोकर उठती है और चाहती है कि उसे बिस्तर पर ही चाय दी जाये, तो यह उसके आलसी होने का प्रमाण है और आलसी होना ‘क्रूरता करना’ नहीं है। परिवार अदालत ने कहा कि याचिका में पति द्वारा लगाये गये आरोप ‘‘बेमतलब’’ और ‘अस्पष्ट’ हैं। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत की इस बात पर अपनी सहमति जाहिर की कि उसने अपनी याचिका में अपनी पत्नी पर लगाये आरोपों के स्पष्ट ब्यौरे नहीं दिये हैं।