नई दिल्ली। देशभर में उपभोक्ता अदालतों में बुनियादी ढांचे की कमी के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्थागत आमूल चूल बदलाव के लिए आज कई निर्देश पारित किए, ताकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ‘निष्प्रभावी’ नहीं बन जाए।
प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उपभोक्ता अदालतों की ‘खराब हालत’ मुख्य रूप से गंभीर रूप से अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, खराब सांगठनिक ढांचा, पर्याप्त एवं प्रशिक्षित लोगों की कमी और फैसला करने वाली संस्थाओं में योग्य सदस्यों के अभाव की वजह से है।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत की अध्यक्षता में गठित शीर्ष न्यायालय की एक समिति द्वारा सौंपी गई अंतरिम रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए पीठ ने गौर किया कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग एनसीडीआरसी और दिल्ली, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु और जम्मू कश्मीर समेत विभिन्न राज्यों में उपभोक्ता अदालतें सही तरीके से काम नहीं कर रही हैं।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल एन राव भी पीठ के सदस्य थे।