मुंबई। बंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई उपनगरीय जिले के कलेक्टर को निर्देश दिया है कि वह मुलुंद में 450 एकड़ की ‘खोटी जमीन’ पर अतिक्रमण से जुड़ी जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों पर गौर कीजिए। कानूनी प्रावधानों के तहत, जमींदारों के स्वामित्व वाली संपत्ति को ‘खोटी जमीन’ कहा जाता है।
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यह निर्देश मुख्य न्यायाधीश डॉ मंजुला चेलूर और न्यायाधीश एम एस सोनक की अध्यक्षता वाली पीठ ने जारी किया। पीठ ने मुंबई उपनगरीय जिले से कहा कि वह कार्यकर्ता भूषण सामंत की ओर से दायर की गई ‘खोटी जमीन’ से जुड़ी जनहित याचिका पर गौर करें और इसपर फैसला करें।
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पीठ ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता का आवेदन पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से लंबित है, इसलिए हमारे लिए यह उचित एवं न्यायसंगत होगा कि हम प्रतिवादी को याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए अभ्यावेदन पर गौर करने के लिए और मामले को एक तय समय में निपटाने के लिए कहा जाए।
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याचिकाकर्ता के मुताबिक कुछ अतिक्रमणकारियों ने इन जमीनों पर अतिक्रमण कर रखा है। हालांकि इस दावे पर पीठ ने कहा कि खोटी जमीन उन्मूलन कानून के बाद, इन जमीनों पर अनाधिकृत कब्जे का दावा करने के लिए कई तथ्यों की पुष्टि की जानी चाहिए। सूचना के अधिकार कानून के जरिए पाई गई जानकारी के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकते कि याचिकाकर्ता राहत का अधिकारी है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि आरटीआई के तहत तहसीलदार से मिली जानकारी स्पष्ट तौर पर दिखाती है कि 450 एकड़ की ‘खोटी जमीन’ पर धनबल और बाहुबल वाले लोगों ने अनाधिकृत रूप से अतिक्रमण कर रखा है।
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