बंकिमचंद्र की पुण्यतिथि पर उन्हें शत्-शत् नमन...इन्होंने वन्देमातरम् गीत से जगाई थी देशभक्ति की अलख

Samachar Jagat | Saturday, 08 Apr 2017 10:32:53 AM
Bankim Chandra Punyatithi today

नई दिल्ली। आज 19वीं शताब्दी के बंगाल के प्रकाण्ड विद्वान, महान कवि और उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की पुण्यतिथि हैं। आज (8 अप्रैल, 1894 ई.) ही के दिन राष्ट्रीयता के जनक इस नायक का को देहान्त हो गया था। बंकिम चन्द्र ने 1874 में प्रसिद्ध देश भक्ति गीत वन्देमातरम् की रचना की, जिसे बाद में आनन्द मठ नामक उपन्यास में शामिल किया गया।

प्रसंगत: ध्यातव्य है कि वन्देमातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।बंकिमचंद्र को उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा। उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से देशवासियों में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की चेतना का निर्माण करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

उनका राष्ट्रीय गीत

राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम् के रचियता बंकिमचन्द्र जी का नाम इतिहास में युगों-युगों तक अमर रहेगा, क्योंकि ये गीत उनकी एक ऐसी कृति है जो आज भी प्रत्येक भारतीय के ह्रदय को आन्दोलित करने की क्षमता रखती है। उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में कुछ कविताएं लिखकर प्रवेश किया। उस वक्त  बंगला में गद्य या उपन्यास कहानी की रचनाएं कम लिखी जाती थीं।

बंकिम ने इस दिशा में पथ-प्रदर्शक का काम किया। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुर्गेश नंदिनी नाम का उपन्यास लिखा। इस ऐतिहासिक उपन्यास से ही साहित्य में  उनकी धाक जम गई।

फिर उन्होंने बंग दर्शन नामक साहित्यिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। रबीन्द्रनाथ ठाकुर बंग दर्शन में लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में आए। वह बंकिम को अपना गुरु मानते थे। उनका कहना था कि, बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं।

चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय
उनका जन्म 26 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना जिले के कांठल पाड़ा नामक गांव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी अपकृत हुई है। वह ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वह इंडिया के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होने 1865 में अपना पहला उपन्यास दुर्गेश नन्दिनी लिखा।


‘वन्दे मातरम’ मंत्र ने भरी चेतना
राष्ट्रीय दृष्टि से आनंदमठ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसी में सर्वप्रथम वन्दे मातरम् गीत प्रकाशित किया गया था। ऐतिहासिक और सामाजिक तानेबाने से बुने हुए इस उपन्यास ने देश में राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने में बेहद योगदान दिया।

लोगों ने ये समझ लिया कि विदेशी शासन से छुटकारा पाने की भावना अंग्रेजी भाषा या यूरोप का इतिहास पढऩे से ही जागी। इसकी प्रमुख वजह थी अंग्रेजों द्वारा भारतीयों का अपमान और उन पर तरह-तरह के अत्याचार, बंकिम के दिए ‘वन्दे मातरम’ मंत्र ने देश के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम को नई चेतना से भर दिया।



 

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