Manoj Kumar Sharma
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना 56 इंच का सीना दिखाकर हिन्दुस्तानी आवाम के दिल में एक खास जगह बनाई थी। दमदार भाषणों और सकारात्मक बातों के कारण देश को मोदी पर पूरा भरोसा था कि लम्बे समय बाद देश में ऐसा कोई नेता आया है जो देश की अस्मिता का ख्याल रखेगा।
कांग्रेस राज में हुए घोटालों के कारण जो देश की छवि को नुकसान पहुंचा था, उस छवि को फिर से सुधारकर हिन्दुस्तान को विश्व पटल पर फिर से मजबूती के साथ अंकित करेगा।
आवाम का ही अटूट विश्वास था कि मोदी को 2014 के लोकसभा चुनावों में बम्पर वोट मिले, जिसकी बदौलत मोदी सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ हो गए।
प्रधानमंत्री का मुकुट पहनने के बाद मोदी ने आक्रामक रुख अपनाने हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैसा साहसिक कदम उठाया। इससे पहले म्यांमार में भी इसी प्रकार की सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया गया था।
ये सभी कदम मोदी की बहादुरी की गाथा गाते हैं। लेकिन पीएम की जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं हो जाती। देश इससे भी विकराल और कठिन परिस्थितियों से गुज़र रहा है। ये समस्याएं या तो पीएम को दिखाई नहीं दे रही या वे देखकर अनदेखा कर रहे हैं।
मुट्ठीभर नक्सली देश की अस्मिता को बार-बार चुनौती देते हैं। सरेआम हमारे जवानों को मौत के घाट उतारते हैं। पुलिस चौकियों को आग के हवाले करते हैं। जब चाहे जिसे चाहे अगवा कर लेते हैं।
सोमवार को तो हद ही हो गई। इन नक्सलियों ने दो राज्यों में बंद का एलान कर दिया। अब सवाल ये उठता है कि ये नक्सली अपनी मनमर्जी कब तक करते रहेंगे? क्या इन्हें रोकने का साहस किसी में नहीं?
सोमवार को नक्सलियों ने झारखंड व बिहार के कुछ जिलों(औरंगाबाद, गया, पलामू व चतरा) में बंद का फरमान सुनाया। हैरानी तो ये है कि नक्सलियों के आदेश के बाद इन जिलों में किसी की हिम्मत नहीं हुई की घऱ से बाहर निकल सके।
नेता क्यूं कुछ नहीं कहते...
हमारे देश के तथाकथित नेतागण बेमतलब के मुद्दों पर घंटों पर बहस कर सकते हैं। लेकिन बात जब नक्सली हिंसा की आती है तो इन्हें सांप सूंघ जाता है। इस मुद्दे पर कोई नेता कुछ नहीं कहता।
ममता बनर्जी से लेकर नीतीश कुमार तक, राहुल गांधी से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक क्यूं कोई इस मुद्दें पर कुछ भी नहीं कहना चाहता? क्या इन विपक्षी नेताओं के लिए ये मुद्दा कोई मायने नहीं रखता? क्या इन सभी के लिए आटे-दाल और पेट्रोल के भाव ही ज्यादा बड़े मुद्दे हैं?
खैर मोदीजी किसी विपक्षी नेता की सुनते नहीं हैं। लेकिन वे अपने दिल की तो सुनते होंगे। क्या उनका दिल निर्दोष जवानों की मौत पर नहीं पसीजता? देश सेवा के वादे करने वाले मोदी इस ओर ध्यान क्यूं नहीं देते?
क्या नक्सलियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं होनी चाहिए? जिससे उन्हें आभास हो कि देश की अस्मिता के साथ खेलने का क्या नतीजा होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला और विभिन्न विविधताओं से परिपूर्ण हमारा देश इन चंद मुट्ठीभर नक्सलियों की बपौती नहीं हैं।
अंत में मोदीजी से एक ही सवाल पूछना बाकि है कि हमारा देश वर्षों पहले अंग्रेजों से तो मुक्त हो चुका है, लेकिन इन भीतरघातियों से कब मुक्त होगा? वो दिन कब आएगा जब देश का प्रत्येक नागरिक देश के किसी भी कोने में खुलेआम और निडर होकर घूम सकेगा?