नई दिल्ली। उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके यह आरोप लगाया गया है कि सरकार आईएएस और आईपीएस जैसी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा एआईजेएस शुरू करने के मुद्दे पर सोई हुई है। साथ ही अदालत से इसके लिए प्रक्रिया शुरू करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
जनहित याचिका में केंद्र को बिना किसी विलंब के एआईजेएस स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि इससे न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में समानता और पारदर्शिता आएगी और उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में न्यायाधीशों की गुणवत्ता में सुधार होगा।
याचिका में कहा गया है कि 50 फीसदी न्यायाधीशों की भर्ती एआईजेएस के जरिए की जा सकती है और इस प्रक्रिया के तहत सिर्फ साबित क्षमता वाले न्यायाधीश पीठ में बैठेंगे और यह न्यायपालिका में त्रुटि, मनमानेपन और भाई-भतीजावाद की गुंजाइश को कम करेगा।
याचिका में कहा गया है कि जहां विधि आयोग ने तीन बार एआईजेएस के गठन की सिफारिश की है, वहीं संसद की स्थायी समिति, प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग और राष्ट्रीय परामर्श परिषद ने इसका अनुमोदन किया है और इसकी सिफारिश की है।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है, ‘‘हालांकि सरकार कमजोर बहाना बनाती है और मामले पर सो रही है। फिलहाल, जहां ज्यादातर सरकारी विभागों में ‘अखिल भारतीय सेवा’ के जरिए भर्ती किए गए लोग हैं, वहीं न्यायपालिका एकमात्र जगह है जहां राष्ट्रीय स्तर की चयन प्रक्रिया की व्यवस्था नहीं है।’’