नई दिल्ली। भारत देश की राजधानी दिल्ली को शर्मसार करने का एक मामला फिर सामने आया है। इस बार न तो यहां किसी का रेप हुआ है और ना ही किसी की हत्या। लेकिन फिर भी ये खबर केन्द्र सरकार और पूरे भारत के लोगों के लिए शर्मसार कर देने वाली है। जानकारी के अनुसार राजधानी दिल्ली में सबसे अधिक करीब 70 हजार बच्चे अभी भी फुटपाथ पर रहने को मजबूर हैं।
वहीं केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम में इनकी संख्या सबसे कम करीब 150 बच्चे है जो फुटपाथ पर रहते हैं। केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने शुक्रवार को लोकसभा में एक पूरक प्रश्न के उत्तर में बताया कि सरकार के पास फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों का कोई निश्चित आंकड़ा नहीं है।
सरकार के पास निराश्रित, अनाथ और परित्यक्त बच्चों की गणना करने की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं है। उन्होंने कहा कि हालांकि दो गैर सरकारी संगठनों ‘डॉन बॉस्को नेशनल फोरम’ और ‘यंग एट रिस्क’ की ओर से देश के 16 शहरों में 2013 में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार महानगरों में सबसे ज्यादा बच्चे फुटपाथों पर रहते थें।
दिल्ली में सबसे ज्यादा 69976 बच्चे ,मुंबई में 16059, कोलकाता में 8287, चेन्नई में 2374 और बेंगलूरु में 7523 बच्चे फुटपाथ पर रहते हैं। इसके अलावा ऐसे बच्चों की संख्या गुवाहाटी में 5534, हैदराबाद में 1797, चंड़ीगढ़ में 2323, दीमापुर में 2455, इम्फाल में 851, शिलंग में 872, विजयवाड़ा में 2238, सेलम में 5752, गोवा में 1287 और बड़ौदा में 2428 है।
मेनका गांधी ने कहा कि ऐसे बच्चों की पहचान करने और उनके पुनर्वास के लिए तथा बाल तस्करी और आश्रय गृहों में बच्चों के यौन शेाषण की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए राज्यों और गैर सरकारी संगठनों की मदद से मंत्रालय की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।
उन्होंने इस संदर्भ में खासतौर से चाइल्ड हेल्पलाइन और ई-बॉक्स सेवाओं का जिक्र करते हुए कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराधों और यौन उत्पीडऩ की घटनाओं को रोकने में ये काफी मददगार साबित हुए हैं। मेनका गांधी ने कहा कि चाइल्ड हेल्पलाइन और ई-बॉक्स पर मिलने वाली शिकायतों पर फौरन कार्रवाई की जाती है।
वार्ता