बर्थ डे वाले दिन लोग कैंडल बुझाकर केक काटते हैं। कुछ लोगों का ये भी मानना है कि जन्मदिन पर कैंडल बुझाने का रिवाज़ जर्मनों के बीच 1746 से शुरू हुआ। क्यों कि इसी वर्ष जर्मनी के धार्मिक और सामाज सुधारक निकोलर जिंजेनडॉर्फ का जन्मदिन केक पर कैंडल लगाकर लोगों ने खुशियां मनाई थी।तभी से ये प्रथा धीरे धीरे सारी दुनिया में फैल गई।
साल भर में एक बार हर किसी का बर्थ डे जरूर आता है और इस दिन को स्पेशल बनाने के लिए हमें बेसब्री से इंतजार रहता है। इन पलों को यादगार बनाने के लिए कोई अपने दोस्तों के साथ मस्ती करता है तो कोई लॉन्ग ड्राइव पर जाता है, तमाम लोग ऐसे भी हैं जो अपनी खुशी के मुताबिक अलग-अलग गतिविधियां करते हैं। लेकिन इन सब के बीच लोग अपने बर्थडे पर केक काटना नही भूलते हैं। ये तो हुई बर्थ डे की बात लेकिन क्या आपको पता कि इस मौके पर कैंडल क्यों बुझाई जाती है? तो आइए हम आपको इस लेख के माध्यम से बताते हैं इसकी वजह।
सैकड़ों साल पुरानी परंपरा
बर्थ डे केक और कैंडल को लेकर कई कहानियां हैं लेकिन आमतौर पर लोग यह मानते हैं कि बर्थ डे केक पर कैंडल लगाने का रिवाज प्राचीन ग्रीस (यूनान) में शुरू हुआ था। उस समय लोग जली हुई कैंडल लगे केक अर्टेमिस (ग्रीक भगवान) के मंदिर में ले जाते थे। वे उन कैंडल्स का प्रयोग आर्टेमिस का चिह्न बनाने के लिए करते थे। बहुत सी संस्कृतियों में माना जाता था कि कैंडल बुझाने के बाद उसका धुआं लोगों की प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाता है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, इसीलिए लोग बर्थ डे केक पर लगी कैंडल बुझाने से पहले कोई न कोई विश मांगते हैं, जिससे उनकी बात धुएं के माध्यम से भगवान तक पहुंचे और उनकी मनोकामनाएं पूरी हों।
भारतीय परंपरा है अलग
भारत में बर्थ डे केक काटने और कैंडल जलाने की परंपरा कहीं ना कहीं पश्चिमी देशों से ही आई है, जबकि भारतीय, हिंदू संस्कृति में बर्थ डे को बिल्कुल अलग तरह से मनाने की सीख दी जाती है, भारतीय परंपराओं के जानकारों का मानना है कि हिन्दू धर्म में दीपक को अग्नि देव का स्वरूप माना गया है। अग्नि देव की उपस्थिति से नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरी शक्तियां दूर रहती हैं। आत्मा प्रकाशित होती है और सात्विक गुणों में वृद्धि होती है, जिसका जिक्र उपनिषदों में भी होता है। प्रकाश नवीनता का सूचक है। तमाम लोग मानते हैं कि जन्मदिन के मौके पर दीपक या कैंडल बुझाने से हम आने वाले समय को नकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। इसलिए कइयों का मानना है कि बर्थडे पर कैंडल बुझाने के बजाय भगवान के सामने घी का दीप जलाना चाहिए।
जर्मनी के लोगों की अलग मान्यता
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि जन्मदिन पर कैंडल बुझाने का रिवाज जर्मन लोगों के बीच 1746 से शुरू हुआ क्योंकि उसी वर्ष जर्मनी के धार्मिक और समाज सुधारक निकोलर जिंजेनडॉर्फ के जन्मदिन पर लोगों ने केक पर कैंडल लगाकर खुशियां मनाई थीं। उस साल उनके जन्मदिन को त्योहार के रूप में मनाया गया था। तभी से ये प्रथा धीरे धीरे सारी दुनिया में फैल गई। एक और जर्मन मान्यता के अनुसार जर्मनी के लोग किंडरफेस्ट के दौरान कैंडल के साथ जन्मदिन मनाते थे। 1700 के दशक में ‘किंडरफेस्ट’ बच्चों का जन्मदिन मनाने का समारोह होता था। उस समय केक के बीच में एक कैंडल लगाई जाती थी जो जीवन की ज्योति का प्रतीक होती थी।