पेसमेकर से बढक़र कार्डियक पैच

Samachar Jagat | Tuesday, 03 Jan 2017 03:32:25 PM
The increased cardiac pacemaker patch

अमेरिका में हारवर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पेसमेकर के विकल्प के तौर पर एक बायोनिक काॢडयक पैच तैयार किया है। इसमें अत्यंत सूक्ष्म (नैनो स्केल) इलेक्ट्रॉनिक पट्टी पर हृदय कोशिकाएं जड़ी हुई होती हैं। यह कार्डियक पैच हृदयाघात के कारण क्षतिग्रस्त हुई दिल की मांसपेशी के विकल्प के रूप में काम करता है। यह वर्तमान में उपयोग किए जा रहे पेसमेकर की ही तरह काम करता है, यानी धडक़न अनियमित होने (अरिदमिया) पर हृदय को इलेक्ट्रिक शॉक देकर धडक़न दुरुस्त करता है।

मगर यह परंपरागत पेसमेकर से इस मायने में बेहतर है कि यह अरिदमिया को पहले ही भांप लेता है और उसे ठीक करने में लग जाता है। साथ ही, चूंकि यह पैच त्वचा पर होने के बजाए सीधे हृदय पर ही लगा होता है, इसलिए इसमें काफी कम वोल्टेज के विद्युत प्रवाह की जरूरत होती है। मगर यह पैच केवल बेहतर पेसमेकर की तरह ही काम नहीं करेगा, इसके और भी उपयोग हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह पैच हृदय रोग के लिए दी जाने वाली दवाइयों के प्रभाव पर भी नजर रख सकता है।

जिंक से बढ़ता पथरी का खतरा
गुर्दे की पथरी (किडनी स्टोन) की समस्या बहुत आम है। हर साल बड़ी संख्या में लोगों के साथ इसकी वजह से अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आती है। आम तौर पर अचानक तीव्र दर्द उठने से इस समस्या के बारे में पता चलता है लेकिन यह समस्या कोई रातो-रात उठ खड़ी नहीं होती। लंबे समय तक विभिन्न खनिज तत्वों के अंश गुर्दे की नलिकाओं व मूत्रवाहिनी में जमा होते जाते हैं और कठोर होकर पथरी का रूप ले लेते हैं।

हाल ही में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि पथरी के निर्माण में जिंक (जस्ता) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जिन लोगों के शरीर में भजक की मात्रा अधिक होती है, उनमें गुर्दे की पथरी बनने की संभावना भी अधिक होती है। साथ ही इन वैज्ञानिकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसा नहीं है कि जिंक हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब होता है। यह तो हमारे आहार का एक अहम अंग है। यदि शरीर में इसकी कमी हो जाए, तो रोग प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर पड़ सकती है। समस्या तब खड़ी होती है, जब शरीर में भजक की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है।

क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम का आंत कनेक्शन
क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति हमेशा थका-थका महसूस करता है, जबकि इसका कोई चिकित्सकीय कारण नजर नहीं आता। शारीरिक या मानसिक श्रम से यह थकान और बढ़ जाती है, जबकि आराम करने से कोई राहत नहीं मिल पाती।

 सिरदर्द, जोड़ों में दर्द, गले में खराश आदि समस्याएं भी सामने आती हैं। अभी तक वैज्ञानिक इस बात का कोई निश्चित जवाब नहीं पा सके हैं कि सीएफएस होता क्यों है। कई शोधकर्ताओं का मानना रहा है कि इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं।

मगर अब एक नई शोध में सीएफएस का संबंध आंतों में मौजूद सूक्ष्म जीवों से पाया गया है। सामान्यत: आंत में 300 से 1000 प्रकार के सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं। ये सूक्ष्म जीव अलग-अलग तरह की भूमिका निभाते हैं। ताजा शोध में पाया गया है कि सीएफएस से ग्रस्त लोगों की आंतों में सूक्ष्म जीवों की विविधता कम होती है।

इनमें सूजन कम करने वाले बैक्टीरिया कम और सूजन बढ़ाने वाले बैक्टीरिया अधिक होते हैं। हालांकि अभी इस विषय में और शोध की जरूरत है कि आंत के सूक्ष्म जीव ठीक किस प्रकार सीएफएस को जन्म देते हैं मगर इस शोध से इस बात को बल मिला है कि यह बीमारी मनोवैज्ञानिक नहीं है।



 

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