आधुनिक जीवनशैली में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का रखें ध्यान

Samachar Jagat | Saturday, 24 Dec 2016 11:00:52 AM
Take care of  children's mental health in the era of  modern lifestyle

आधुनिक जीवनशैली का असर बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास की प्रक्रिया पर भी पड़ रहा है। खेल के मैदान का स्थान प्ले स्टेशन ने ले लिया है। शिक्षा से लेकर खेलकूद तक हर क्षेत्र में उन पर प्रतियोगिताओं में आगे निकलने का दबाव पड़ रहा है। 

खासतौर पर शहरों के एकल परिवारों में माता-पिता यदि दोनों वर्किग हैं, तो बच्चे अकेलेपन से भी जूझ रहे हैं। इन सब कारणों से बच्चों में चिड़चिड़ापन और जल्दी गुस्सा एक आम समस्या हो गई है। 

आमतौर पर माता-पिता इसे बच्चे की बदतमीजी और नादानी का नाम देकर नजरअंदाज कर देते हैं। मनोचिकित्सक कहते हैं, माता-पिता को बच्चे की गलत आदतों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। उसके कारणों को जानने की कोशिश करनी चाहिए। 

संभव है कि खेलकूद न कर पाने या स्कूल में कोई विषय न समझ आने के कारण या फिर दोस्तों के बीच झगड़ा व नाराजगी के कारण बच्चा चिड़चिड़ा व्यवहार कर रहा हो। माता-पिता की अटेंशन पाने के लिए भी बच्चा छोटी बातों पर गुस्सा होने लगता है।

दूसरों के सामने डांटें नहीं, अकेले में समझाएं : आमतौर पर माता-पिता हाइपरएक्टिव बच्चे के स्वभाव को बद्तमीजी मानकर बार-बार दोस्तों और रिश्तेदारों के सामने डांटते-फटकारते रहते हैं। लंबे समय तक ऐसा करना बच्चे की मानसिकता, आत्मविश्वास और दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ उनके व्यवहार पर नकारात्मक असर डालता है।

 बच्चे के आसपास ऐसा माहौल बनाने का प्रयास करें, जिससे बच्चा अपनी हाइपरएक्टिविटी से बाहर आ सके। यदि बच्चे को किसी काम से रोकना है तो उसे दूसरों के सामने न डांटकर अकेले में समझाएं।

माना कि आपके पास कई तरह की जिम्मेदारियां और तनाव हैं, पर जरूरी होगा कि अपने गुस्से, चिड़चिड़ापन और चिंताओं पर नियंत्रण रखें। खुद को चिंतामुक्त रखने के लिए बाहर घूमना या अन्य मनोरंजन के तरीके ढूंढ़ें। बच्चे को अपनी चिंताओं के लिए दोष न दें। सकारात्मक वातावरण बनाने का प्रयास करें।

कैसा रखें अपना व्यवहार : हाइपरएक्टिव बच्चों को ज्यादा से ज्यादा खेलकूद और बाहरी एक्टिविटीज में व्यस्त रखना जरूरी होता है। बच्चे को डांस या आर्ट क्लास में भेज सकते हैं। समय-समय पर उन्हें आउटडोर गेम्स खेलने के लिए बाहर ले जाना भी अच्छा है। 

इससे बच्चे की अतिरिक्त शारीरिक ऊ$र्जा व्यय होगी और आत्म अभिव्यक्ति व सामाजिक व्यवहार की समझ भी विकसित होगी। हाइपरएक्टिव बच्चे की हर गतिविधि पर नजर रखना जरूरी है। नियमित रूप से उसकी स्कूल टीचर से मिलते रहें। इससे बच्चे के व्यवहार को समझने में मदद मिलेगी। 

टीचर को वजह बताते हुए बच्चे को आगे वाली सीट पर बिठाने का अनुरोध भी कर सकते हैं। यदि बच्चे को ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखने के काम या किताबों को दूसरे बच्चों में वितरित करने में व्यस्त रखा जाए तो उनकी हाइपरएक्टिविटी पर काबू पाया जा सकता है।

बच्चा यदि ज्यादा हाइपरएक्टिव है तो बच्चे की मन:स्थिति का विश्लेषण करने के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह लें। हाइपरएक्टिव बच्चों के लक्षण एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर) से काफी मिलते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों में एडीएचडी की समस्या 3-7' तक देखी गई है। 

इससे न केवल बच्चे के आत्मसम्मान पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि आसपास के लोगों के साथ उनके संबंध भी प्रभावित होते हैं। एडीएचडी एक दिमागी जैविक बीमारी है, जिसका इलाज दवाओं द्वारा किया जा सकता है। ऐसे में बच्चे को विशेष रूप से शिक्षा तथा थेरेपी दी जाती हैं, ताकि बच्चा अपने क्रोध व अतिसक्रियता पर नियंत्रण करना सीख सके। 
 



 

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