इंफेक्शन का कॉलेज कनेक्शन : यह प्यार मरीज न बना दे

Samachar Jagat | Wednesday, 25 Jan 2017 11:43:05 AM
Infection of the College Connection: The patient can not make love

हने सुनने में वायरल यानी फ्लू आपको जितना सामान्य लगता है, उतना ही खतरनाक भी है। बदलते मौसम में वायरल संक्रमण तेजी से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो हर साल ज्यादातर युवा सामान्य संक्रमण यानी वायरल की चपेट में आते हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान  संस्थान (एम्स) के इंटर मेडिसिन विभाग में वरिष्ठ सलाहकार का कहना है कि अस्पताल में पहुंचने वाले लगभग 70 प्रतिशत टीन्स में एक साथ ड्रिंक्स, खाने-पीने और टिश्यु पेपर शेयर करने की वजह से संक्रमण होता है। कॉलेज जाने वाले ज्यादातर लडक़े-लड़कियां फ्रेंडशिप को तमाम औपचारिकताओं से अलग मानते हैं और खुद को बिंदास दिखाने के चक्कर में सर्दी-जुकाम, खांसी होने पर भी कोई एहतियात नहीं बरतते, नतीजा वे संक्रमण की गिरफ्त में आ जाते हैं। 

सर्दी, खांसी, गले में दर्द और वायरल संक्रमण होने पर भी एक दूसरे से खाने-पीने की चीजें शेयर करते हैं। ग्रुप में छींकने और खांसने पर मुंह पर रुमाल नहीं रखते और वायरल होने पर भी कॉलेज में एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर घूमते हैं, नतीजा यह कि एक तो वह खुद जल्दी ठीक नहीं होते, साथ ही दोस्तों में भी संक्रमण फैलाते हैं।

डॉ. गुलेरिया बताते हैं कि वायरस संक्रमण तेजी से पैर पसारता है, जिन युवाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उनको इन्$फेक्शन जल्दी पकड़ता है और एहतियात नहीं बरतने पर दूसरा संक्रमण भी हो जाता है, जिससे वह न्यूमोनिया के शिकार हो जाते हैं। यदि ग्रुप में एक व्यक्ति भी इस संक्रमण का शिकार हुआ है तो अन्य लोगों में भी यह संक्रमण फैलने में देर नहीं लगती।

इससे बचने का आसान तरीका है यदि आपके ग्रुप में किसी को लगातार खांसी-जुकाम या फिर गले में दर्द और बुखार है तो उसे घर पर ही आराम करने की हिदायत दें ताकि वह एक्सपोजर से बचें। भीड़-भाड़ यानी कॉलेज कैंपस में न आएं। ग्रुप में एकदूसरे की खाने-पीने की चीजें शेयर न करें। कितना ही करीबी दोस्त क्यों न हो, छींकने और खांसने पर मुंह पर रुमाल रखने की सलाह दें।

कॉलेज जाने वाले युवाओं में गलत आदतों की वजह से कई बीमारियां जैसे मोटापा, थकान, हृदय और पेट संबंधित संक्रमण की समस्या सामने आती हैं। मौज-मस्ती और खाने-पीने के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होता। मौज-मस्ती भरे माहौल में किया गया लंच हमेशा याद रहता है, कॉलेज कैंटीन या रेस्तरां में सब के साथ मिल-बैठ कर भोजन करने के क्षणों में सेहत को भूल बैठना आम बात है। 

कई युवा कॉलेज कैंटीन, रेस्तराओं में खाना खाते हैं। भागदौड़ भरी भजदगी में खाना छोडऩा, भागते-भागते खाना या जो मिल गया उसी में काम चला लिया, की प्रवृति युवाओं की सेहत पर बुरा असर डालती है। ज्यादातर युवा कॉलेज में लंच नहीं ले जाते। उन्हें कैंटीन में दोस्तों से गप्पें मारते हुए चिप्स, बर्गर खाना खूब भाता है। जंक फूड में सोडियम होता है, जिसकी वजह से उनमें ब्लडप्रेशर की समस्या सामने आती है। 

ज्यादातर युवा सॉफ्ट ड्रिंक्स पीना पसंद करते हैं। ऐसे लोगों की खुराक बहुत कम होती हैं और मोटापा बढ़ता है तो हर चीज का खतरा बढ़ जाता है। इसमें उच्च रक्तचाप से लेकर दिल की बीमारी तक शामिल है। ज्यादा वसायुक्त भोजन या अनुचित खान-पान से शरीर में वसा बढ़ता है। सामान्य लोगों की तुलना में मोटे लोगों में प्रोटीन का स्तर अधिक होता है, जिसके कारण धमनियां हृदय में सही तरह से रक्त का संचार नहीं कर पातीं और दिल पर खतरा 84 प्रतिशत अधिक हो जाता है। 

 हाल के अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि खुद मोटापा हृदय को बेकार करने के लिए काफी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 50 प्रतिशत शहरी मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं जिनमें करीब 15 प्रतिशत युवा ही हैं। इतना ही नहीं, उनमें पेट संबंधित संक्रमण भी अधिक होता है। जहां तक संभव हो घर का बना खाना ही खाएं।

 ज्यादा तला, भुना और जंक फूड खाने से बचें। खाने का टाइम निश्चित करें। कॉलेज में लडक़े-लड़कियों के बीच त्वचा की बीमारी भी काफी आम होती है। अक्सर युवा एक दूसरे से कंघी, तौलिया और कपड़े से लेकर कॉस्मेटिक्स तक शेयर करते हैं। इससे कई तरह के इं$फेक्शन होने का खतरा बना रहता है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि लगभग 40 फीसदी लड़कियां और 50 फीसदी लडक़े अपना कंघा शेयर करने की वजह से 30 प्रतिशत तक इं$फेक्शन के शिकार होते हैं।

 इस कारण अचानक सिर में खुजली और डेंड्रफ की समस्या पैदा हो सकती है। नए रिसर्च से यह पता चला है कि डेंड्रफ का मुख्य कारण पी ओवेल नामक फंगल है जिसे माइक्रोब भी कहते हैं। यदि डेंड्रफ का इलाज जल्द न कराया जाए तो सीबोरिक डरमेटाइटिस नामक रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। डेंड्रफ के कणों के भीतर संक्रमण फैलाने वाले जीवाणु मौजूद होते हैं।

जो शरीर के अन्य भागों जैसे गर्दन, कंधे, कमर, पीठ और चेहरे पर स्पर्श करते हैं तो बैक्टीरिया त्वचा पर दाने, फुंसी, मुहांसे और खुजली को बढ़ावा देते हैं। समय से उपचार न होने पर बालों का झडऩा, चकत्ते, बालों का पकना और गंजेपन की समस्या शुरू हो जाती है। कॉलेज जाने वाली अधिकांश लड़कियां एक दूसरे का कॉस्मेटिक्स शेयर करती हैं जिसकी वजह से शहरी लड़कियों में 22 प्रतिशत और महानगरों की लड़कियों में 12 प्रतिशत त्वचा संबंधी एलर्जी देखने को मिलती है, जिसे कॉन्टेक्ट डरमेटाइटिस कहते हैं।

अक्सर लड़कियां चेहरे पर चकत्ते, खुजली, आंख, होंठ, कान, चेहरे, गले व जुबान में सूजन, खुजली और दाग की समस्या लेकर अस्पताल पहुंचती हैं। इसमें युवाओं के एक-दूसरे की देखा देखी और नासमङी में उल्टे-सीधे प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने का बड़ा कारण होता है। नतीजा, संवेदनशील त्वचा पर उसका असर एलर्जी के रूप में देखने को मिलता है। बदलते मौसम में इसके कीटाणु तेजी से पैर पसारते हैं।

 जिन युवाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, वह इस संक्रमण के जल्दी शिकार होते हैं। सिर में हुए संक्रमण को कैपिटिस जांघों में हुए संक्रमण को टिनिया क्रूरिस, पैरों वाले संक्रमण को टिनिया पिडिश और हाथों वाले संक्रमण को टिनिया मैनम कहा जाता है। कहा जाता है दोस्ती की कोई सीमा नहीं होती तो फिर एहतियात क्या बरतें, इसके लिए बारे में जरूर जान लेना चाहिए। ध्यान रहे कि हमेशा कपड़े साफ-सुथरे पहनें। अपनी त्वचा के अनुसार ही कॉस्मेटिक्स का चयन करें, यह जरूरी नहीं जो क्रीम आपकी सहेली लगा रही है, वह आप को भी सूट करे। अपना कंघा, तौलिया, कॉस्मेटिक्स हमेशा अलग रखें। यदि आपको पहले से कोई त्वचा संबंधी बीमारी है तो उसका इलाज कराएं। युवाओं में क्रिकेट का जुनून होता है। स्पोर्ट्स उनका पैशन है। 

अब खेलेंगे तो चोट भी लगेगी ही। वे स्पोर्ट्समैन लुक पाने के लिए दिन-रात हैवी एक्सरसाइज करते हैं। कॉलेज में होने वाले स्पोर्ट्स कॉम्पीटिशन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।

रफ एण्ड टफ एटिट्यूड के कारण वे छोटी-मोटी चोट पर ध्यान नहीं देते, नतीजा आगे चलकर उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यही वजह है कि 80 प्रतिशत लोगों में पुरानी चोटों की वजह से कई हड्डी संबंधी दिक्कतें पैदा होती हैं। घुटने की गठिया भी उनमें से एक है। सचिन तेंदुलकर इसका एक बड़ा उदाहरण हैं, जिन्हें बचपन में लगी पुरानी चोट अब खेलने में दिक्कत पैदा कर रही है। 

हड्डी में लगी चोट सालों-साल परेशान करती है। शुरुआत में लगी मामूली चोट पर ध्यान न देने से बाद में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। आजकल ज्यादातर युवाओं में खेलकूद, दुर्घटनाओं, गिरने या बहुत ज्यादा कसरत करने के कारण भी दिक्कतें सामने आ रही हैं। उनमें मुख्यत: मांस पेशियों की कमजोरी, उंगली में चोट, कोहनी, घुटने, कमर में दर्द, जोड़ों में अकडऩ और जोड़ों का अपनी जगह से खिसकना आदि से संबंधित होती हैं। 

कई मामलों में यह देखा गया है कि रोगी खुद अचरज करते हैं कि यह मेरे साथ कैसे हुआ, मैं तो हमेशा फिट रहा हूं? उन पुराने दिनों को याद कीजिए जब आप घंटों फुटबाल खेला करते थे। कई बार आपको घुटनों पर चोट भी लग जाती थी। तब आप कुछ दिन आराम फरमाकर कुछ दर्द निवारक दवाई लेकर दर्द से छुटकारा पा लेते थे। कुछ समय के लिए दर्द से तो राहत मिल गई, लेकिन बीमारी जड़ से खत्म नहीं हुई। सर्वे बताते हैं कि अक्सर घुटनों का गठिया (ऑस्टियोऑथ्राइटिस) उन लोगों को होता है जिनको अतीत में चोटें लगी हों या उनके जोड़ों पर असामान्य दबाव रहा है।


 इसलिए दोस्तो, क्रिकेट खेलते, कसरत करते हुए यदि कोई चोट लगे या नस भखच जाए तो उसे नजरंदाज न करें, बल्कि किसी अच्छे हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह लें। अपने मन से कोई दवा न लें।



 

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