पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी ने पिछले तीन-चार दशकों के दौरान तीव्र विकास किया है। आज के समय में मनुष्य के अंदर आधुनिकरण एवं विकास की लालसा की वजह से पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। प्रदूषण से लेकर ओजोन डिप्लिशन तक हो या फि र भूमिगत जल संदूषण से लेकर ग्लोबल वॉर्मिंग हो, सभी मनुष्य के द्वारा किया जा रहा है। चारों ओर से पर्यावरण संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती दिखाई दे रही है। अत: इन सभी समस्याओं का समाधान होना अतिआवश्यक है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी इन्हीं समस्याओं को मद्देनजर रखते हुए जैव प्रौद्योगिकी प्रमुख शाखा बनती जा रही है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी ने न सिर्फ अपशिष्ट जल में जहरीली धातुओं और खतरनाक अपशिष्ट को खत्म करके दिखाया है, बल्कि सूक्ष्म जीवों की जैव-रासायनिक की संभावना को बढ़ा दिया है, जिससे हम अपने पर्यावरण के पक्ष में प्रयोग कर सकते हैं। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु का प्रयोग कर हम योग्य विलक्षणता से बना सकते हैं, जो कि पर्यावरण के सतत पोषणीय विकास के लिए अत्यंत लाभकारी है।
जैवोपचारण यानि कि जैव कारकों का प्रयोग कर पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करवाना भी पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी का एक अच्छा उदाहरण है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल सिर्फ वातावरण को स्वच्छ रखने में ही नहीं, अपितु कई घटकों पर भी कर सकते हैं। हरा ईंधन (ग्रीन फ्युल) बनाने की तकनीक का इजात हुआ है, जो कि इसके अंतर्गत ही आता है।
राजस्थान में रतनजोत के पौधों का अधिक मात्रा में प्रयोग कर हरा ईंधन बनाया जा रहा है। इस तकनीक के जरिए हमारी निर्भरता प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले ईंधन जैसे - कोयला, पेट्रोल आदि पर कम हो गई है।
पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी की ही दो शाखाएं हैं - 1। विष ज्ञान (टोक्सिकोलॉजी) 2। जैव रसायन (बायोकेमेस्ट्री)। इन दोनों क्षेत्रों का प्रयोग हम अपने पर्यावरण को संरक्षित करने में कर सकते हैं।
डॉ. बी लाल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेकनोलॉजी भी पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अच्छा योगदान दे रहा है।
यहां पर्यावरणीय जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं व इस पर छात्रों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं, जिससे आज के युवा भी अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहे व पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान दे सके।