महाराष्ट्र का प्रमुख त्योहार है गुड़ी पडवा, इसे मराठी और गोवा के लोग बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। आज पूरे देश में गुड़ी पड़वा की धूम मची हुई है, वहीं कुछ लोग कल यानि 29 मार्च को ये त्योहार मनाएंगे। ‘वास्तु पूजा’ के लिए यह दिन शुभ माना जाता है और नए कारोबार खोलने के लिए भी इस दिन को महत्व दिया जाता है। इस दिन महाराष्ट्र में कई सामुदायिक जुलूस भी निकालते हैं। ये पर्व क्यों मनाया जाता है इसके बारे में अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं जो इस प्रकार हैं.....
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चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दु नववर्ष का आरम्भ होता है। ’गुड़ी’ का अर्थ ’विजय पताका’ होता है। कहते हैं शालिवाहन नामक एक कुम्हार-पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं को पराजित किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।
महाराष्ट्र के लोगों के अनुसार, इस दिन लंका के राजा रावण को पराजित करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे थे।
युग और आदि शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि‘। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि‘ और महाराष्ट्र में यह पर्व ग़ुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन चैत्र नवरात्रि का प्रारम्भ होता है।
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इस दिन सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है। इस दिन घर-घर में विजय के प्रतीक के रूप् में गुड़ी सजाई जाती है। उसे नवीन वस्त्राभूषण पहनाकर शक्कर से बनी आकृतियों की माला पहनाते हैं। वहीं घरों में इस दिन विशेष भोजन यानि पूरन पोली बनाते हैं और अपने घरों को सजाते-संवारते हैं। नए कपड़े पहनकर लोग अपने घरों में पूजा-अर्चना करते हैं और एक दूसरे को गुड़ी पड़वा की शुभकामनाएं देते हैं।
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