मृत्यु का भय सताता है तो अवश्य करें इस मंत्र का जाप

Samachar Jagat | Tuesday, 29 Nov 2016 01:22:02 PM
This chant is persecuting the fear of death

किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद 'कर्पूरगौरं करुणावतारं' मंत्र बोला जाता है। इस मंत्र को बोलना मात्र सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाना नहीं है बल्कि एक विशेष कारण है जिसकी वजह से पूजा और आरती के बाद ये मंत्र बोला जाता है। आइए आपको बताते हैं इसके बारे में...

शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान विष्णु द्वारा इस मंत्र का जाप किया गया। इसमें भगवान शिव के रूप और गुणों का वर्णन किया गया है। मंत्र के अनुसार, भोलेनाथ का स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति।

मंत्र के अनुसार, जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें और हमारे मन से मृत्यु का भय दूर हो। आइए अब आपको विस्तार से इस मंत्र के अर्थ के बारे में बताते हैं....

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कर्पूरगौरं मंत्र :-

करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

मंत्र का अर्थ :-

इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-

कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम्- इस शब्द का अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

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मंत्र का पूरा अर्थ-

जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह््रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

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