नवदुर्गा के दूसरे स्वरूप में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कि जाती है, आदिशक्ति दुर्गा का द्वितीय स्वरूप साधको को अनंत शक्ति देने वाला है। मां ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से जीवन के मुश्किल समय में भी साधक का मन कर्तव्य निष्ठा से परिपूर्ण और अविचलित रहता है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप परम खिलते हुए कमल जैसा है जिसमें से प्रकाश निकल रहा है परम ज्योर्तिमय है, ये शांत और निमग्न होकर तप में विलीन हैं।
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इनके मुखमंडल पर कठोर तप के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोकों को उजागर करने में सक्षम है। मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला है और बाएं हाथ में कमण्डल है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्मत्व का स्वरूप हैं अर्थात ब्रह्मतेज का साकार स्वरूप हैं। इनके आज्ञा चक्र से तेज निकल रहा है जैसे की इनका तीसरा नेत्र हो। ये गौरवर्णा है तथा इनके शरीर से हवन कि अग्नि प्रज्वलित हो रही है।
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इन्होंने ध्वल रंग के वस्त्र धारण किए हुए हैं। मां ने कमल को अपना श्रृंगार बना लिया है, इनके कंगन, कड़े, हार, कुंडल तथा बाली आदि सभी जगह कमल जड़े हुए हैं अतः स्वर्णमुकुट पर कमल की मुकुटमणि जड़ी हो जैसे । मां ब्रह्मचारिणी का ये स्वरुप माता पार्वती का वो चरित्र है जब उन्होंने शिव की साधना के लिए तप किया था ।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप अवश्य करें :-
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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