हिंदू धर्म से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिनसे आप अबतक है अनजान

Samachar Jagat | Tuesday, 01 Nov 2016 08:00:03 AM
Hindu religion has a few things that you still unknown

भारत में आज भी कई ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं जिन्हें आज की युवा पीढ़ी सामान्य तौर पर काल्पनिक अथवा यूजलैस कह कर सदा ही आलोचना करती रहती है। परन्तु इन मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक कारण छिपे होते हैं, जिन्हें धर्म के साथ जोड़ दिया गया है। आइए जानते हैं सनातन धर्म में शुरु की गई ऐसी ही प्रचलित 10 मान्यताओं के बारे में...

मूर्तिपूजा-  दुनिया के सभी धर्मों में से केवल हिंदू धर्म में ही मूर्तिपूजा को केंद्र में रखा गया है। हालांकि वेदों इस पर कोई विशेष लेख नहीं मिलते। लेकिन इसके पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक कारण जरूर बताए जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अगर हम किसी चीज पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं तो इसके लिए उसका कोई आकार या अस्तित्व होना जरूरी है। क्योंकि इसके अभाव में तो हम अनंत संसार में भटकते ही रह जाएंगे।

इसीलिए छोटे बच्चों को अल्फाबेट सिखाते समय उन्हें अक्षरों के साथ चित्र भी दिखाए जाते हैं ताकि वो उन्हें जल्दी से याद हो जाएं। ठीक इसी प्रक्रिया को हिंदू धर्म ने अपनाया है। यहा अलग-अलग भावभूमि वाले लोगों के लिए अलग-अलग देवताओं की मूर्तियों की परिकल्पना की गई तथा उनकी पूजा का प्रावधान किया गया। जैसे ब्राह्मणों के लिए सरस्वती, क्षत्रियों के लिए दुर्गा और वैश्य वर्ग के लिए लक्ष्मी।

शादी में दूल्हे-दुल्हन को मेहंदी लगाना- भारतीय समाज में शादी एक बहुत ही लंबा और थकाऊ काम है, जिसमें शादी की तैयारियों में जुटे लोग काफी थक जाते हैं। ऐसे में दूल्हे तथा दुल्हन के हाथ व पैरों में मेहंदी लगाई जाती है। इन जगहों पर मेहंदी लगाने से उनके मस्तिष्क को काफी आराम मिलता है तथा वह तनावमुक्त हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त मेहंदी के प्रयोग से हाथ-पैरों की सुंदरता भी निखर उठती है। इसके अलावा ये एक आयुर्वैदिक औषधि भी मानी गई है। इसीलिए कुछ जगह घर के अन्य सदस्य भी मेंहदी लगाते हैं।

नमस्कार करना-  हिंदू धर्मावलंबी एक दूसरे से मिलते समय हाथ जोड़कर नमस्कार या नमस्ते कहते हुए अभिवादन करते हैं। जहां एक और यह मुद्रा सामने वाले व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर इस मुद्रा में दोनों हाथों की सभी अंगुलियां तथा अंगूठें एकसाथ मिलते हैं। इससे आंख, कान तथा मस्तिष्क से जुड़ी नसों के बिंदुओं पर दबाव पड़ता है, जिससे शरीर के इन हिस्सों की कार्यक्षमता में सुधार होता है। इसके अलावा जब कोई हम किसी से मिलते हैं तब या तो सामने वाला व्यक्ति बाहर से आता है या हम बाहर से आते हैं। ऐसे में हमारे शरीर पर अनेक प्रकार के विषैले तत्व लगे होते हैं जो कि शरीर स्पर्श होने के दौरान एक से दूसरे तक पहुंच जाते हैं। लेकिन नमस्कार से हम इस अनवांछित संक्रमण से बच जाते हैं।

पूजा के समय घंटियां बजाना- जब भी हम किसी मंदिर में प्रवेश करते हैं तो वहां गर्भगृह में मौजूद घंटी बजाते हैं। इसके पीछे आध्यात्मिक कारण बताया गया है कि घंटी बजाने से बुरी शक्तियां आदमी से दूर रहती हैं तथा भगवान प्रसन्न होते हैं। परन्तु वैज्ञानिकों के अनुसार घंटियों की शेप कुछ इस तरह की होती हैं कि जब उन्हें बजाया जाता है तो एक विशेष इको (ध्वनि प्रभाव) पैदा होता है जो कि वातावरण में भी प्रभावशाली तरंगे उत्पन्न करता है। इसका सीधे मस्तिष्क पर असर होता है तथा मस्तिष्क के दाएं तथा बाएं भाग के बीच एकात्मकता उत्पन्न होती है जिससे दिमाग की एकाग्रता बढ़ती है। यदि पिनड्रॉप साइलेंस में घंटी बजाई जाए तो इस प्रभाव को स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है।

 

नदी में सिक्के फैंकना- वैज्ञानिकों के अनुसार तांबा और चांदी जैसी धातुएं पानी के मौजूद गंदगी को निष्क्रिय कर उसे स्वच्छ करती है। पुराने जमाने में तांबे के सिक्के प्रचलित थे। अत: पुराने जमाने में यह परिपाटी  बनाई गई कि सभी लोग कभी-कभार या विशेष अवसरों पर नदियों में सिक्के डालें जिससे उनमें पर्याप्त मात्रा में तांबा घुल जाएं तथा पानी की सफाई कर सके। यह एक तरह से पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा था जिसे धर्म से जोड़ कर सभी के लिए पालना करना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि वर्तमान में स्टेनलैस स्टील या गिल्ट के सिक्के चलते हैं जो कॉपर के सिक्कों की भांति नदियों के पानी को शुद्ध नहीं कर पाते, परन्तु समय के साथ इनमें जंग लग जाती है और पानी अशुद्ध होता है।

पैरों में चांदी की बिछिया पहनना- भारत में विवाहित महिलाएं दोनों पैरों की अंगूठे के पास वाली उंगली में चांदी की बिछिया पहनती हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस उंगली की नस गर्भाशय तथा ह्रदय से जुड़ी हुई होती है। ऐसे में इन दोनों अंगुलियों में बिछिया पहनने से इन नसों पर दबाव पड़ता है तथा उनका मासिक चक्र सही रहता है। परन्तु इसमें भी एक बात का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है कि बिछिया केवल चांदी की ही होनी चाहिए, सोने, लोहा अथवा अन्य किसी धातु की नहीं। चांदी ऊर्जा का सुचालक मानी जाती है अत: यह पृथ्वी पर चलते समय पृथ्वी की ऊर्जा अवशोषित कर महिलाओं में प्रवाहित करती है जिससे उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। यदि बिछिया सोने या लोहे जैसी धातु की पहन ली जाएं तो उनके बीमार होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। वैसे आजकल को फैशन के अनुसार एक दो या इससे भी ज्यादा उंगलियों में बिछिये पहने जाते हैं।

उत्तर दिशा में सिर करके नहीं सोना- इसके पीछे आम धारणा है कि इससे भूत हमारे पीछे लग जाते हैं परन्तु वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाता है कि आदमी के शरीर में लौह तत्व उपस्थिति होने के कारण स्वयं का भी एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है, जो हमारे मानसिक स्थिति तथा शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। ऐसी स्थिति में जब हम उत्तर की ओर सिर तथा दक्षिण की ओर पैर करके सोते हैं तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से हमारे शरीर के चुंबकीय क्षेत्र का तालमेल नहीं हो पाता। इसके फलस्वरूप शरीर के रक्त में मौजूद रक्तकण सिर की ओर प्रवाहित होने लगते हैं। जिससे शरीर में ब्लडप्रेशर व मानसिक तनाव जैसी समस्याएं पैदा होने लगती है। यदि लंबे समय तक इसी स्थिति में सोया जाएं तो व्यक्ति सिरदर्द, अल्ज़ाईमर या पार्किंसन जैसी गंभीर बीमारियों से भी ग्रसित हो सकता है।

ललाट पर टीका लगाना- योग शास्त्र में ललाट पर दोनों भौहों के मिलन-बिंदु को आज्ञा चक्र माना गया है। इसके सक्रिय होने से व्यक्ति को आध्यात्मिक, मानसिक तथा शारीरिक लाभ प्राप्त होते हैं। यदि इस स्थान पर सही तरीके से दबाव दिया जाए तो आज्ञा चक्र सक्रिय होता है तथा चेहरे की सभी नसों में रक्त संचार में नियमितता आती है। इससे चेहरे की सुंदरता तो बढ़ती ही है, व्यक्ति की मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ जाती है। इसी कारण से स्त्री तथा पुरुषों दोनों के लिए ललाट के बीचों-बीच तिलक लगाना अनिवार्य किया गया है। इसी कारण हिंदू पुरुष तिलक तथा महिलाएं बिंदी लगाती हैं। हालांकि आजकल तो स्टीकर वाली बिंदियां आ गई हैं लेकिन इसका महत्व तो चंदन का टीका लगाने पर ही है। इससे आपके दिमाग को ठंडक मिलती है।

जमीन पर बैठ कर भोजन करना- भारतीय घरों में प्रचलित इस प्रथा का संबंध योग शास्त्रों से जोड़ा जाता है। वास्तव में जब हम जमीन पर आलथी-पालथी मार कर बैठते हैं तो वह सुखासन अथवा अद्र्धपदमासन होता है। इस आसन में बैठने से मस्तिष्क शांत होता है तथा हमारा पाचन संस्थान सक्रिय होता है। माना  जाता है कि इस मुद्रा में बैठने पर पेट दिमाग को भोजन पचाने के लिए आवश्यक पाचन रसों का स्त्राव करने का संकेत देता है जिससे भोजन शीघ्र ही पच जाएं। इसके अलावा जब आप नीचे बैठकर खाना खाते हैं तो आपके गिरने की कोई संभावना नहीं रहती और आप निश्चिंत होकर भोजन कर सकते हैं।

खाने की शुरूआत मिर्च-मसाले से, अंत में मीठा- हमारे पूर्वजों के अनुसार खाने का असर हमारे शरीर पर होता है। खाने की शुरूआत में तेज मिर्च-मसालायुक्त भोजन करने से पेट में मौजूद एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं तथा पाचक रसों को पैदा करते हैं जिससे खाना आसानी से पच सके। जबकि मीठा खाना इन पाचक रसों को स्त्राव को मद्धिम कर देता है और खाना सही तरीके से नहीं पच पाता। इसी कारण भोजन की शुरूआत मिर्च-मसालेदार भोजन से की जाती है तथा सबसे अंत में मीठा तथा वसायुक्त पदार्थों को ग्रहण किया जाता है।



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.