हर महीने में दो बार त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है, एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। अगर सोमवार को त्रयोदशी तिथि पड़ती है और इस दिन प्रदोष व्रत किया जाता है तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है और मंगलवार के दिन पड़ने पर इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है।
शनिवार के दिन करें ये कार्य शनिदेव होंगे प्रसन्न
इसके अलावा जब प्रदोष व्रत शनिवार को होता है तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। शास्त्रों में शनि प्रदोष व्रत का बहुत महत्व बताया गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि प्रदोष व्रत शनि के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए उत्तम होता है।
शनिदेव नवग्रहों में से एक हैं और शास्त्रों में वर्णन है कि इनका कोप अत्यन्त भयंकर होता है। किन्तु पुराणों के अनुसार शनि प्रदोष व्रत करने से शनि देव का प्रकोप शांत हो जाता है। जिन लोगों पर साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव हो, उनके लिए शनि प्रदोष व्रत करना बहुत ही लाभदायक माना गया है।
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इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर शनिदेव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को परेशानियों से बचाकर उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। शनि प्रदोष वाले दिन जो जातक शनि की वस्तुओं जैसे लोहा, तैल, तिल, काली उड़द, कोयला और कम्बल आदि का दान करता है, शनि-मंदिर में जाकर तेल का दिया जलाता है तथा उपवास करता है, शनिदेव उससे प्रसन्न होकर उसके सारे दुःखों को हर लेते हैं।
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