ज्योतिष शास्त्र में रत्न धारण करने की अनेक विधियां बताई गई हैं। इनमें सर्वाधिक प्रचलित विधि व्यक्ति की राशि के आधार पर रत्न धारण करने की है तथा दूसरी विधि जन्मकुण्डली के आधार पर है। अलग -अलग रत्नों को धारण करने की विधि भी अलग होती है हम आपको यहां लहसुनिया रत्न को धारण करने की विधि के बारे में बता रहे हैं।
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लहसुनिया को केतु का रत्न माना गया है। इसका रंग हल्के पीले रंग का तथा बाँस के रंग के समान होता है। यह रत्न सरकारी कार्यो में सफलता दिलाने वाला तथा दुर्घटना आदि से बचाने वाला होता है। आइए आपको बताते हैं लहसुनिया रत्न धारण करने की विधि....
लहसुनिया रत्न की अंगूठी सोने या चांदी में बनवाकर, सोमवार के दिन कच्चे दूध व गंगाजल से धोकर अनामिका अंगुली में निम्नलिखित मंत्र के उच्चारण के साथ धारण करनी चाहिए -
च्च्ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमःज्ज्
लहसुनिया रत्न पहनने के लाभ :-
भूत-प्रेत का डर सता रहा हो तो लहसुनिया रत्न पहनना चाहिए, इससे भूत-प्रेत संबंधि डर दूर होता है।
कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु उपस्थित हो तो लहसुनिया रत्न पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।
कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया अवश्य पहनना चाहिए।
केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी लहसुनिया धारण करना फायदेमंद होता है।
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कुंडली में केतु शुभ भावों का स्वामी हो और उस भाव से छठे या आठवें स्थान पर बैठा हो तो भी लहसुनिया पहना जाता है।
कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या भाग्येश के साथ हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए।
कुंडली में केतु धनेश, भाग्येश या चौथे भाव के स्वामी के साथ हो या उनके द्वारा देखा जा रहा हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए।
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