महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों का छल से वध किया था। पुत्रशोक में जब पांडवों ने श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा किया तो वे भाग गए। फिर भी जब अर्जुन ने उनका पीछा न छोड़ा तब अश्वत्थामा ने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र चल दिया।
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उससे बचने के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। महर्षि वेदव्यास के कहने पर अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस लौटा लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था। तब उन्होंने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
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क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकाल ली और कलयुग के अंत तक उन्हें पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया। तबसे अब तक अश्वत्थामा निरंतर पृथ्वी पर भटक रहे हैं। आपको बता दें जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक में एक अमूल्य मणि विद्यमान थी जो उनकी दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से रक्षा करती थी।
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