‘पांच विकारों ने मनुष्य की दसों इंद्रियों को जीतकर उसे संवेदनहीन बना दिया है’
चंडीगढ़। मुनिश्री विनयकुमारजी आलोक ने कहा कि यह बड़ा ही गूढ़ प्रश्न है सभी की भिन्न-भिन्न प्राथमिकताएं होती हैं। उन्हें प्राप्त करने का ढंग भी अलग-अलग होता है। मनुष्य अपने बारे में सबसे पहले सोचता है उसके बाद परिवार के प्रति। ऐसे भी लोग हैं जो परिवार के मोह में अपने हित भी उपेक्षित कर देते हैं। जितना अधिक उदार मनुष्य का मन होता है उतने ही अधिक लोग उसकी चिंता के दायरे में सिमटते जाते हैं। थोड़े से लोग ऐसे भी हुए, जिन्होंने किसी भेदभाव के बगैर पूरे समाज की चिंता की।
वे आज महापुरुष के रूप में पूज्यनीय हैं। इसके लिए अपने आप से लडऩा पड़ता है। ये विचारमनीषीसंत मुनिश्री विनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर 24सी अणुव्रत भवन के तुलसीसभागार में सभा में व्यक्त किए।मनीषीश्री संत ने कहा मनुष्य वास्तव में एक अत्यंत निरीह प्राणी है। इसे पांच शक्तिशाली योद्धाओं ने घेर रखा है।
ये योद्धा हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार। मनुष्य का इनसे बड़ा शत्रु और कोई नहीं है। ये इतने प्रबल हैं कि मनुष्य की इंद्रियों को जीतकर अपने वश में कर लेते हैं। जब इंद्रियों पर इन शत्रु योद्धाओं का आधिपत्य हो जाता है तब मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य को खो देता है। विवेक, बुद्धि, संयम, संतोष, दया और परोपकार जैसे गुण पराजित हो जाते हैं। जितना शक्तिशाली इनका प्रभाव होता है, मनुष्य उतना ही निर्बल होता जाता है। कई बार मनुष्य अपनों के हितों को ही दांव पर लगा देता है। अपने ही परिवार का शत्रु बन जाता है।
ज्ञान, धर्म, नैतिकता, मूल्य आदि उसके लिए अर्थहीन हो जाते हैं। ऐसे लोगों के सामने धर्म, समाज की जितनी भी बातें की जाएं वे व्यर्थ हो जाती हैं। समाज में बदलाव की बातें निरंतर होती रहती हैं। इसके बावजूद समाज में गिरावट रुक नहीं रही। इसका कारण यही है कि बातें पत्थरों से की जा रही हैं। पांच विकारों ने मनुष्य की दसों इंद्रियों को जीतकर उसे पत्थर जैसा संवेदनहीन बना दिया है। ये पांच योद्धा समाज में व्याप्त वातावरण के कारण शक्तिशाली हो गए हैं और मनुष्य की इंद्रियों को जीतने में सफल रहे हैं।