धन को परमार्थ में खर्च करो : मुनिश्री

Samachar Jagat | Tuesday, 23 May 2017 09:39:07 AM
Spend money in God's name: Munishri

चित्तौडग़ढ़ । आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में इतिहास से लेकर आज तक सबसे ज्यादा स्थान परमार्थ को दिया गया है। भले ही देश के किसी गांव में स्कूल, अस्पताल ना भी हो लेकिन भारत के प्रत्येक ग्राम में देवस्थान जरुर है। कारण यह है कि लोगों ने अपने से ज्यादा महत्व परमार्थ को दिया है। 

अर्थ समाप्त हो जाता है, लेकिन परमार्थ कभी समाप्त नहीं होता है। यही प्रथा प्राचीन भारत से आज तक चली आ रही है। लोग लूखी रोटी खाकर भी भगवान के आगे घी की ज्योत जलाते आए हैं, ऐसा सम्पूर्ण विश्व में केवल भारत में ही देखने को मिलता है।

मुनिश्री सोमवार को निम्बाहेड़ा की आदर्श कॉलोनी में भगवान शांतिनाथ के नवीन मंदिर के भूमि पूजन एवं शिलान्यास के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि मनुष्य के द्वारा कमाए गए अर्थ का कभी भी अनर्थ हो सकता है। कमाए हुए धन को यदि मनुष्य परमार्थ में लगाता है तभी उसके जीवन की सार्थकता है। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में मकान बनाने में जो विभिन्न प्रकार की जीव हिंसा होती थी, उसका प्रायश्चित करने के लिए मनुष्य मंदिर बनाता था ताकि उस हिंसा का सकारात्मक रुप से समाधान किया जा सके।

 उन्होंने कहा कि स्कूल, अस्पताल केवल जीवन की जरुरत है जिसमें आदमी को शिक्षा प्रदान की जाती है एवं उसके जीवन की व्यवस्था को मरने से बचाने का काम होता है लेकिन एक मंदिर का निर्माण करना व्यक्ति के कई भवों को सार्थक करना होगा है, जो कि व्यक्ति द्वारा जो मंदिर बनाया जाता है उसमें जीवन पर्यंत जो भी पूजा-पाठ, अर्चना होती है उसका छठा पुण्य लाभ उस व्यक्ति को मिलता रहता है। संसार में व्यक्ति को स्वयं के लिए अपनी कमाई का आधा हिस्सा खर्च करना चाहिए तथा परमार्थ के कार्य में दुगुने उत्साह से सहयोग देना चाहिए। वर्तमान श्रावकों के संदर्भ में कहा कि मंदिर में 100 रुपए चढ़ाना आदमी को भारी लगता है लेकिन शॉपिंग मॉल व अन्य शौक मौज में खर्च करने में उसे 2000 रुपए का नोट भी छोटा लगता है।

उन्होंने कहा कि पाप में नहीं पुरुषार्थ में खर्च करो। पुनित से उपार्जित संसाधनों का उपयोग परमार्थ में करो एवं लगातार पुण्य का उपार्जन करो। आपने सम्पति के चार प्रकार बताये हैं, भाग्य लक्ष्मी जो बिना किसी प्रयास के किसी करोड़पति या राजा महाराजा के घर जन्म लेने से स्वयं मिल जाती है। इस लक्ष्मी को भी मनुष्य तभी भोग पाता है जब व्यक्ति उक्त धन का उपयोग पुरुषार्थ में करता है। द्वितीय लक्ष्मी को पुण्य लक्ष्मी कहा गया है, यह लक्ष्मी पुण्य से आये धन को एवं भाग्य की कमाई का निवेश पुण्य एवम पुरुषार्थी में करता है।

उन्होंने कहा कि क्या पाया यह महत्वपूर्ण नहीं है पैसा कहा लगया यह महत्वपूर्ण है। धन के बाद व्यक्ति का निधन हो उससे पहले व्यक्ति को पुण्य पुरुषार्थ में अपना धन लगाकर अपने जीवन को धन्य बना लेना चाहिए।

मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति जीवन में पुण्य अनुकुल संयोग देता हैं, षटकाय जीव की हिसा केे बिना धन नही कमाया जा सकता है आपने सीमेंट उद्योग के सन्दर्भ में कहा कि खनन में जीव हिसा कर धनोपार्जन करके गौरवानवीत नहीं होना चाहिए, धन के साथ पाप भी साथ-साथ आता है पृथ्वीकायी जीव स्थावर हिंसा अग्निकायिक जीव वायुकायिक जीव आदि की खनन से हिंसा होती है इससे प्राप्त आय को व्यक्ति पुण्य लक्ष्मी से धनाढ्य बनता है लेकिन व्यक्ति को धनान्ध नहीं बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि नदी में बाढ़ कभी भी साफ पानी से नहीं आ सकती उसी प्रकार व्यापार में आय के साथ पाप अवश्यम्भावी है उसे पुण्य करते हुए हमेशा धोते रहना चाहिए। 

तृतीय लक्ष्मी को पाप लक्ष्मी बताया गया है जो व्यक्ति उपार्जित धन को पाप के रास्ते पर लगाता है जैसे सुरासुन्दरी, भोग विलास में खर्च करके पापान्नुबधि पुण्य का कारक बनता है ऐसे व्यक्ति अपने धन को पुण्य मार्ग में नही लगायेगे तो कगाल हो जाएंगे। पाप उसके पास ज्यादा इक्कठा हो जाएंगे एवं पुण्य की कमी होने से ऐसे जीवन का बर्बात होना निश्चित है। चुर्तुथ लक्ष्मी अभिषप्त लक्ष्मी बताया गया जिसमे केवल धनसग्रह करना और न खाना न खर्च करना केवल जौडना सम्पति का ना उपयोग करना ना उपभोग करना इस श्रेणी में आता है ऐसे कंजुस को भी बहुत बड़ा दानी ही मानन चाहिए क्योंकि वह अपने जीवनभर उपार्जित धन को दूसरो कि लिए ही छोडक़र जाता हैं। 

उन्होंने कहा कि धन को जोडऩा नहीं सदैव परमार्थ कार्यों बहाना चाहिए, तभी उसकी सार्थकता है। आपने धर्म के मार्ग में अपना अर्जित धन को लगाने के मामले में वण्डर सीमेन्ट, आरके मार्बल एवं पाटनी परिवार को साधुवाद दिया कि उनके संस्कारयुक्त व्यवसाय से देश को प्रेरणा लेनी चाहिये एवं अपना धन संमार्ग पर लगाना सीखना चाहिये। इससे पूर्व मुनिश्री प्रमाणसागरजी एवं विराटसागरजी महाराज ने वन्डर सीमेंट परिसर से विहार कर निम्बाहेडा नगर में प्रवेश किया। जगह-जगह उनका पादप्रक्षालन एवं मंगल आरती हुई। मुनिश्री के सानिध्य में आरके मार्बल एवं वंडर सीमेंट गु्रप के अशोक पाटनी विमल पाटनी एवं सुरेश पाटनी एवं परिवार एवं दानदाताओं द्वारा नवीन मन्दिर जी के शिलान्यास कार्यक्रम एवं भूमि पूजन कार्यक्रम को सम्पन्न कराया एवं पाटनी परिवार द्वारा मुनि श्री को शास्त्र भेंट किए गए।

इस अवसर पर दिगम्बर जैन समाज निम्बाहेड़ा द्वारा मंदिर निर्माण में सहयोग करने वाले पाटनी परिवार एवं अन्य दानदाताओं का बहुमान किया गया। कार्यक्रम में भीण्डर, नीमच, चित्तौडग़ढ़ सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रावकों ने मुनि श्री को श्रीफल भेंट किया। 
कार्यक्रम में पूर्व विधायक अशोक नवलखा, पालिका चेयरमैन श्री पंचोली, समाजसेवी सुरेश खेरोदिया, डॉ. जेएम जैन, अशोक खेरोदिया आदि ने मुनिश्री को श्रीफल भेंट किए एवं उनके पाद प्रक्षालन किए। धर्मसभा में वण्डर सीमेन्ट वक्र्स निम्बाहेड़ा के अध्यक्ष शशिमोहन जोशी, उपाध्यक्ष नितीन जैन, निदेशक पी. पाटीदार सहित भारी संख्या में श्रावक उपस्थित थे। निम्बाहेड़ा के विधायक एवं राज्य के यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी ने भी मुनिश्री के प्रवास स्थल पर मुनिश्री को श्रीफल भेंट कर दर्शन किए एवं राज्य की अमन चैन एवं खुशहाली की कामना की। 
 



 

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