आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज ने व्यक्ति को नहीं व्यक्तित्व को पहचाना : मुनिश्री

Samachar Jagat | Friday, 26 May 2017 10:46:04 AM
Acharya gyansagarji  Maharaj recognized the person not personally: Munishri

चित्तौड़गढ़ । आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज ने कहा कि दिगम्बर जैनाचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज सम्पूर्ण भारत भूमि पर ऐसे महान आचार्य रहे जिन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने ही एक शिष्य को आचार्य पद पर काबिज कर उसी शिष्य से संलेखना लेकर समाधि को धारण किया। ऐसा उदाहरण पूरे विश्व के इतिहास में देखने, सुनने व पढऩे को नहीं मिलता हैं। आचार्य ज्ञानसागर महाराज ऐसे महान आचार्य साबित हुए, जिन्होंने अपने ही शिष्यत्व को स्वीकार किया और उसे आचार्य पद की उपाधि देकर कृतार्थ किया। आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने व्यक्ति को नहीं व्यक्तित्व को पहचाना और अपने शिष्य को निर्यापक आचार्य बनने का अनुरोध किया एवं उनसे अपनी स्वयं की संलेखना करवाई एवं आचार्य पद त्याग कर शिष्य को आचार्य बनाया। 

वे गुरुकुल सृजन का कार्य करते रहे लेकिन कालान्तर में समाज ने उन्हें कुलगुरू के रूप मे प्रतिष्ठापित एवं अंगीकार कर लिया। मुनिश्री गुरुवार को चित्तौडग़ढ़-उदयपुर मार्ग पर मंगलवाड चौराहा पर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज के 45वें संलेखना दिवस एवं समाधि दिवस पर धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थान के छोटे से ग्राम राणोली में जन्मे भूरालाल नामक व्यक्ति ने जैनत्व दीक्षा धारण कर आचार्य ज्ञानसागर बनकर अल्प शिक्षित होने के बावजूद अपने स्वाध्याय एवं तप के बल पर ऐसे महान साहित्यों की रचना की, जिनको पढक़र आज सम्पूर्ण देश में भारी संख्या में लोगों ने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। 

मुनिश्री ने कहा कि ज्ञानसागर महाराज ने स्वाध्याय के बल पर ही जैन धर्म के पौराणिक एवं गुढ़ दार्शनिक साहित्य एवं ग्रंथों को सामान्य बोलचाल की भाषा एवं लौकिक भाषा में समय सार जैसे ग्रंथ की हिंदी टीका करके जैन समाज पर एवं सम्पूर्ण मानव जाति पर एक अहसान किया हैं। उन्होंने कहा कि आचार्य ज्ञानसागरजी द्वारा लिखे गए सैकड़ों साहित्य तो उनकी जड़ कृति हैं लेकिन चेतन कृति के रूप में उन्होंने आचार्य विद्यासागरजी नामक शिष्य को इस मानव जाति के कल्याण के लिए समर्पित किया जो आज धरती पर भगवान के रूप मे पूजे जा रहे हैं। 

आपने कहा कि आचार्य ज्ञान सागर महाराज का पूरा संसंघ एवं उनके तमाम शिष्य तब से अब तक सभी बाल ब्रम्हचारी है अत: राम के पहले दशरथ का वंदन होना चाहिए तभी एक नहीं सौ रामायण सृजित हो सकती है। उनके शिष्य आचार्य विद्यासागर महाराज आज विश्व संत हैं लेकिन हमें उनको इस मुकाम पर पहूंचाने वाले आचार्य ज्ञानसागर महाराज को हमें प्रथम नमन करना चाहिए तभी उनके प्रति सच्ची भावांजलि होगी। मुनि श्री ने उनके जीवन की सरलता एवं भव्यता के कई दृष्टान्त श्रावको को श्रवण करवाये जिनसे श्रावक भावुक हो गये।

मुनिश्री ने कहा कि आगामी 30 जून को आचार्य ज्ञानसागर महाराज के शिष्य आचार्य विद्यासागर महाराज की 50वीं दीक्षा जयंती सम्पूर्ण विश्व मे मनाई जा रही है, जिसे लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों के साथ मनाने की श्रावकों से अपील की और कहा कि उक्त दीक्षा दिवस एक विरला है कारण कि दीक्षित होकर लगातार 50 वर्ष तक आचार्य पद पर रह कर मानव जीवन का कल्याण करने वाले ऐसे प्रथम आचार्य विद्यासागर महाराज हैं जिनकी जयंती सम्पूर्ण राष्ट्र में एक अभिनव रूप में मनाई जानी चाहिए।

आरंभ में आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज एवं आचार्य विद्यासागर जी महाराज की छवि पर दिगम्बर जैन समाज के सूरज मल बोहरा, पारसमल पचारिया भीण्डर, निर्मल बिलाला मंगलवाड, भैरुलाल बिलाला, अतुल भाई अडाणी, संदीप गोधा मकराना ने दीप प्रज्जवलन कर मुनिश्री को शास्त्र भेंट किए। भीण्डर की श्राविकाओं द्वारा एक मार्मिक मंगलाचरण स्तुति प्रस्तुत की और कहा कि ढलते हुए सूरज ने कहा मेरे ढलने के बाद कौन करेगा मेरा कार्य, आचार्य ज्ञानसागर के शिष्य आचार्य विद्यासागर करेगें उनके कार्य और धरती को करेंगे ज्ञान की ज्योति से तम को हर कर करेगें प्रकाशवान।

प्रवचन सभा में श्री महेन्द्र टोंग्या, हेमेन्द्र टोंग्या, मनोहरलाल अग्रवाल चित्तौडगढ़, रोड़मल जैन सांवलिया जी, भीण्डर जैन समाज के समस्त पदाधिकारी एवं श्रावक महिलाएं, चिकारड़ा, संगेसरा, सालेरा, अडिन्दा, पाश्र्वनाथ, समाज के अध्यक्ष एवं पदाधिकारी सहित उदयपुर, निम्बाहेड़ा, मध्यप्रदेश एवं सम्पूर्ण देश के श्रावकों ने मुनिश्री को श्रीफल भेंट कर वन्दना की। मुनिश्री की आहारचर्या एवं शंका समाधान कार्यक्रम मंगलवाड मे ही सम्पन्न हुआ। इससे पूर्व मुनिश्री ससंघ का चिकारडा से विहार कर मंगलवाड पहुंचने पर विभिन्न समाजों द्वारा मुनिश्री की अगुवानी की गई एवं पाद प्रक्षालन कर उनकी आरती उतारी गई। प्रवचन सभा में मंगलवाड़ के सुश्रावक एवं डूंगला के पूर्व प्रधान ललित ओस्तवाल सहित विभिन्न समाजोंके प्रतिनिधि उपस्थित थे।

मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज एवं विराटसागरजी महाराज का शुक्रवार प्रात: 5:30 बजे मंगलवाड़ चौराहा से विहार होकर उदयपुर फोरलेन मार्ग के ग्राम वाना में मंगल प्रवेश होगा। यहां मुनिश्री के प्रवचन एवं आहारचर्या एवं शंका समाधान एवं रात्रि विश्राम होगा। यह जानकारी मुनि श्री संघ के साथ विहार कर रहे सुश्रावक श्री अशोक जैन चिरोता किशनगढ़ ने दी।



 

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