काठमांडू। नेपाल में संविधान संशोधन को लेकर चल रहा विवाद और गहरा गया है। बुधवार को प्रमुख मधेसी संगठनों ने सरकार के संविधान संशोधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इससे संविधान में संशोधन कर बीच का रास्ता निकालने की चल रही पहल जटिलता में फंस गई है। वहीं, मधेसियों के इस रुख का मतलब है कि संविधान संशोधन के लिए अपनाई गई जिस जटिल प्रक्रिया के जरिए नए संविधान के लिए लोगों का जो व्यापक समर्थन खासकर तराई क्षेत्र के लोगों का चाहिए वह मुश्किल में फंस सकता है।
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नेपाल के संविधान पर आगे क्या होगा इसे लेकर बुधवार को देर शाम को संयुक्त मधेसी मोर्चा की बैठक होनी है जिसमें आगे की रणनीत को लेकर खुलासा हो सकता है। इससे पहले नेपाल सरकार ने मधेसियों की मांगों के मददेनजर संविधान में संशोधन का प्रस्ताव दिया था। यह आंदोलनरत मधेसी समुदाय और अन्य समुदायों की मांगों को पूरा करने के लिए नए प्रांत का गठन करने से संबंधित था। इन समुदायों ने पिछले साल बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें 50 लोगों की मौत हो गई थी। सीपीएन-यूएमएल इस विधेयक का विरोध कर रही थी।
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मंत्री परिषद ने इसका मसौदा कल ही पारित किया था जिसके बाद संसद सचिवालय में इस विधेयक को सूचीबद्ध किया गया। विधेयक में तीन अन्य अहम मुददों- नागरिकता, उच्च सदन में प्रतिनिधित्व और देश के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली भाषाओं को मान्यता- को भी संबोधित किया जाने का प्रावधान दिया गया। इस बाबत कल दोपहर बालूवाटर में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर मंत्रिमंडल की बैठक भी हुई थी।
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सरकार ने यह कदम संघीय गठबंधन (फेडरल अलायंस) द्वारा तीन सूत्रीय समक्षौते को लागू करने के लिए दिए गए 15 दिन के अल्टीमेटम के खत्म होने के बाद उठाया है। संघीय गठबंधन मधेसी पार्टियों और अन्य समुदायों का समूह है जो उपेक्षित लोगों के लिए और अधिक प्रतिनिधित्व और अधिकारों की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा है। आंदोलनरत मधेसी पार्टियों ने दो प्रमुख मुददे रखे हैं-पहला प्रांतीय सीमा का पुन: सीमांकन और नागरिकता।