धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए पूरी दुनिया में पिछले 47 सालों से हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस (Earth Day) मनाया जाता रहा है लेकिन प्रदूषण घटने की बजाए बढ़ता ही जा रहा है और जलवायु परिवर्तन के खतरे से यह संकट और गहरा होता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय भूगोल संघ के उपाध्यक्ष प्रोफ आर बी सिंह ने पृथ्वी दिवस की पूर्व संध्या पर यूनीवार्ता से बातचीत में यह टिप्पणी की।
दिल्ली विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सिंह ने कहा कि अमेरिका के सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन के प्रयासों से 1970 में पहली बार पूरी दुनिया में पृथ्वी दिवस मनाया गया और तब से लेकर आज तक पिछले 47 सालों से विश्व हर साल पृथ्वी दिवस मनाता है। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए भारत समेत कई देशों में कानून भी बनाए गए लेकिन प्रदूषण पर काबू नहीं पाया जा सका जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है।
आज विश्व का औसत तामपान भी 1.5 डिग्री बढ़ गया है। देश की राजधानी दिल्ली में अप्रैल में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि औद्योगिक उत्पादन के बढऩे और अंधाधुंध विकास कार्यों और पेट्रोल, डीजल तथा गैसों के अधिक इस्तेमाल से भारत कॉर्बन उत्सर्जन के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर पहुंच गया है और हिमालय के ग्लेशियर भी पिघलने लगे हैं इससे भयंकर बाढ़ और प्राकृतिक आपदा की घटनाएं भी बढऩे लगी हैं।
कॉर्बन उत्सर्जन के मामले में अमेरिका और चीन पहले तथा दूसरे स्थान पर हैं। अगर यही रफ्तार रही तो जिस तरह आबादी और वाहनों की संख्या बढ़ रही है, भारत कॉर्बन उत्सर्जन के मामले में और आगे न बढ़ जाए। इसलिए नीति निर्धारकों के साथ -साथ हर नागरिक को सचेत होने की जरुरत है क्योंकि पर्यावरण असंतुलन से जलवायु परिवर्तन तो हो ही रहा है कृषि उत्पादन और स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है।
अंतरराष्ट्रीय भूगोल संघ के उपाध्यक्ष प्रोफ आर बी सिंह ने कहा कि पृथ्वी दिवस मनाने की परंपरा शुरू होने के बाद ही 1972 में संयुक्त राष्ट्र ने मानवीय पर्यावरण पर पहला सम्मलेन आयोजित किया। इस से पहले 1967 में क्लब ऑफ रोम नामक एक गैर सरकारी संगठन ने पर्यावरण की तरफ ध्यान खींच था और 1972 में एमआईटी के शोधार्थियों ने प्रगति की सीमा तय करने की बात कही थी। आखिर दुनिया में इस तरह अंधाधुंध प्रगति कब तक होती रहेगी।
उन्होंने कहा कि भारत में नई आर्थिक नीति के बाद पिछले 25 साल में आर्थिक गतिविधियों में काफी तेजी आई और औद्योगिक विकास भी हुआ जिसका असर पर्यावरण पर भी हुआ। उन्होंने कहा कि भारत गत वर्ष दो अक्टूबर को जलवायु परिवर्तन पर हस्ताक्षर करने वाला 62वां देश बन गया इसलिए उसकी जिम्मेदारी बढ़ गई है और जनता को भी अधिक संवेदनशील होने की जरूरत हैं। स्वच्छता आंदोलन तो एक हिस्सा है। पर्यावरण की रक्षा के लिए जन आंदोलन की जरुरत है। अन्यथा पृथ्वी दिवस मानाने का कोई औचित्य नहीं है।