तम्बाकू और स्वास्थ्यकर्ता.....

Samachar Jagat | Wednesday, 23 Nov 2016 03:35:14 PM
Tobacco and Health doer

जिस देश में प्रतिदिन तम्बाकूजनित रोगों से ~3,300 प्रतिदिन मर जाते हों, उस देश के अग्रणी स्वास्थ्य सम्बंधित संगठन और समूचा स्वास्थ्यकर्मी महकमा उससे जुड़ा ना हो तो दुःख तो होगा ही. आईये जाने क्यों हैं ऐसी परिस्थिति.

सबसे बड़ा कारण इस हेतु आवश्यक विषय-संबंधी जानकारी का अभाव है. क्योंकि यह विषय चिकित्सकों, परिचारिकाओं और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के पाठ्यक्रमों में अब तक समाहित नहीं किया गया है, इसके प्रति अपेक्षित आवश्यक और उचित कार्यवाही का मोटे तौर पर व्यापक अभाव है. इसीलिए एक आम स्वास्थ्यकर्मी देश-प्रदेश में प्रतिदिन होने वाली लगभग साढ़े तेरह लाख मृत्युओं के तथ्य से अनजान है और निष्क्रीय भी सिवाय इसके कि जब भी उनका सामना किसी तम्बाकू-उपभोगी रोगी से होता है और यदि उन्हें लगता है कि इससे जिस रोग को वे उपचारित करने जा रहें हैं, यदि वह बिना तम्बाकू-उपभोग छोड़े ठीक नहीं होगा तब वे उस रोगी को उसे छोड़ने हेतु कह देते मात्र हैं.   

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वैश्विक तौर पर, कम से कम एक चिकित्सक तो यह अपेक्षा की ही जाती है वह तम्बाकू नियंत्रण में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित भूमिकाओं का निर्वाह कर पायेगा. ये भूमिकाएँ हैं:

1.    एक रोल-मॉडल होने की जोकि परोक्ष-अपरोक्ष रूप से तम्बाकू उपभोग से सर्वथा मुक्त हो: इसमें उन्हें भी जोड़ लें जोकि इसे मात्र सामाजिक स्तर पर, याने कभी-कभार पार्टियों-त्योहारों, मित्र-मिलन, इत्यादि, जैसे अवसरों पर इसका उपभोग करते हैं. यदि तम्बाकू-उपभोगी को सलाह देने वाला स्वयं ही वह त्रुटी करते दिखे तो कौन उसकी बात को समझेगा-मानेगा.  

2.    हर एक तम्बाकू उपभोगी रोगी को, प्रत्येक चिकित्सकीय-संपर्क पर तम्बाकू छोड़ने हेतु उपचार लेने के लिए प्रेरित करने और उन्हें किसी अन्य रोग के रोगी की ही भांति तत्परता से उपचारित करने की- यदि वे इसे न छोड़ना चाहें तब भी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो तम्बाकू उपभोग और इसके कारण निकोटीन-व्यसन को तो एक रोग की तरह भी वर्गित किया हुआ है. परन्तु अभी तक स्वास्थ्यतंत्रों में ऐसा प्रतिपादित नहीं किया जा रहा है, जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, तब तक रोगियों में तम्बाकू-बोझ, उन्हें पहचानने, उन्हें उपचारित करने की दर और परिणामों को नहीं जाना जा सकेगा. साथ ही यह भी अपेक्षित है कि तम्बाकू उपचार में प्रशिक्षित चिकित्सक अपने अन्य सभी चिकित्सा-सहकर्मियों को इस हेतु प्रेरित-प्रशिक्षित भी करेंगे. और, अपने अस्पतालों में तम्बाकू उपभोगियों को पूर्णता से उपचारित करने हेतु व्यवस्था को स्थापित करने की रुपरेखा बनाने और उसे लागू करने हेतु सहभागिता से कार्यरत हो सकेंगे.    

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3.    तीसरी महत्वपूर्ण भूमिका है समाज में तम्बाकू-मुक्त वातावरणों को प्रोत्साहित करते रहने की. शुरुआत तो निश्चित ही चिकित्सा-इकाईयों से ही होने चाहिए- स्वास्थ्य-सेवाओं के हर स्तर पर. यदि रोगी व उसके परिवारजन जब ऐसा वातावरण पायेंगे तब ही तो इसका महत्व जान पायेंगे और अपने समाज- घर, लोकस्थानों, कार्य- व सामाजिक-स्थलों, वाहनों, इत्यादि, को तम्बाकू-मुक्तकरने हेतु प्रेरित हो सकेंगे.

4.    चिकित्सक की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है, अपने देश-प्रदेश की स्वास्थ्य-सम्बन्धी नीतियों और कार्यक्रमों को योजनाबद्ध तरीकों से बनाने और लागू करने की. अतः किस प्रकार तम्बाकू नियंत्रण को मजबूती मिल सके उस हेतु नीति निर्धारकों  के साथ चिकित्सकीय सक्रियता अतिआवश्यक होती है, एक विश्वसनीय संदेशकर्ता के रूप में. भारतवर्ष सहित विश्वभर में जहाँ-जहाँ और जब-जब चिकित्सकों ने इस हेतु अपना नेतृत्व प्रदान किया है, तम्बाकू नियंत्रण उतना ही अधिक मजबूत और सशक्त हुआ है.    

लेखन-

डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, राजस्था न कन्सर फाउंडेशन और वैश्विक परामर्शदाता, गैर-संक्रामक रोग नियंत्रण (केन्सर और तम्बाकू).

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