अब तक फैट को ही कई बड़ी बीमारियों का कारण माना जाता रहा है। कुछ स्टडीज में फैट्स के दुष्परिणाम सामने आने के बाद ज्यादा से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स खाने पर जोर दिया गया। इसी को ध्यान में रखते हुए 70 के दशक में अमेरिकी सरकार और कुछ सगंठनों ने कम फैट और ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली खुराक लेने पर जोर दिया।
भोजन उत्पाद के विनिर्माण से जुड़े उद्योगों में खाद्य पदार्थों में शुगर की मात्रा बढ़ा दी गई और फैट को कम कर दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि करीब खाने में फैट के इस्तेमाल में करीब 30 फीसदी गिरावट आई। इसका सकारात्मक परिणाम आने की बजाए 40 सालों में मोटापा और डायबीटीज के मामले बहुत तेजी से बढ़े। स$फेद चावल, चीनी वाली पेय, स$फेद रोटी, क्रैकर्स और बिस्किट के सेवन से मोटापा और डायबीटीज ने महामारी का रूप ले लिया। इसने दिल से जुड़ी बीमारियों के खतरे को भी बढ़ा दिया।
कई अन्य स्टडीज में यह खुलासा हुआ कि ज्यादा फैट लेने से आपके शरीर में कोई खास बदलाव नहीं होता है बल्कि मट्ठा और नट्स से मिलने वाले फैट्स के मुकाबले कार्बोहाइड्रेट वाले खाने से ज्यादा वजन बढ़ता है। अमेरिकन मेडिकल असोसिएशन की पत्रिका में छपे डेविड लडविग के लेख में इसकी अच्छी तरह से व्याख्य की गई है।
अन्य शोधों में भी यह सामने आया कि खाने में कम कार्बोहाइड्रेट लेकर ज्यादा वजनी लोग अपने वजन को प्रभावी ढंग से कम कर सकते हैं। शुगर से न सिर्फ दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है बल्कि कुछ ऐसे भी प्रमाण मिले हैं जिसमें कैंसर से इसके संबंध की पुष्टि हुई है।
करीब 100 सालों पहले सभी व्यक्ति औसत रूप से 4 पौंड्स शुगर रोजाना लेते थे। आज यह आंकड़ा उसके मुकाबले करीब 40 गुना ज्यादा यानी 160 पौंड्स हो गया है। ज्यादातर भोजन में शुगर का इस्तेमाल होता है। अमेरिका के ऐंडर्सन कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं ने बताया कि कैंसर सेल्स बढऩे के लिए शुगर का इस्तेमाल करती हैं। इससे संबंधित प्रयोग चूहे पर किया गया। जिन चूहों को फ्रक्टोज कॉर्न सीरप दिया गया था, उनके अंदर छाती और $फेफड़े का कैंसर पाया गया।
इसके बाद अमेरिका में भोजन से संबंधित निर्देश में फैट के इस्तेमाल की ऊपरी सीमा को हटा दिया गया। 20वीं सदी के मध्य में अमेरिका में लोगों ने 40 फीसदी कैलरी फैट से हासिल की। फैट में ऊ$र्जा का घनत्व काफी उच्च है और कार्बोहाइड्रेट के 4 कैलरी प्रति ग्राम के मुकाबले इससे आपको 9 कैलरी प्रति ग्राम मिलता है।