वाशिंगटन। आज के इस फैशन के दौर में हर कोई स्मार्ट दिखना चाहता है। इसके लिए वह कुछ भी कर सकता है। स्मार्ट दिखने के लिए कई लोग प्लास्टिक सर्जरी करवा लेते है पर इसके बाद में कष्टदायी परिणाम सामने आने लगते है।
ऐसे ही महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर या अन्य कारणों की वजह से ब्रेस्ट इंप्लांट करवाना पड़ जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं ब्रेस्ट इंप्लांट कराने से महिलाओं को ना सिर्फ कैंसर हो रहा है बल्कि उनकी मौत भी हो रही है।
ब्रेस्ट इंप्लांट में खतरनाक कैंसर
अमेरिका में 2011 के बाद ब्रेस्ट इंप्लांट कराने वाली 9 महिलाओं की मौत की पुष्टि सरकारी एजेंसी एफडीए ने की है। एफडीए के अनुसार साल 2011 में ही ब्रेस्ट इंप्लांट कराने वाली महिलाओं में एनाप्लास्टिक लार्ज-सेल लिंफोमा (ALCL) का एक खतरनाक कैंसर होने का पता चला था। यह संख्या बहुत कम है क्योंकि बड़ी तादाद में दुनिया के भीतर ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग ही नहीं होती है।
दो तरह के ब्रेस्ट इंप्लांट
मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार, 186 महिलाओं में ब्रेस्ट सिलिकॉन जेल से फिल की गई हैं और 126 की सैलिन फिलर से।
एफडीए का कहना है कि एक्जैक्ट नंबर कैलकुलेट करना बहुत डिफिकल्ट है। 1 फरवरी 2014 तक ब्रेस्ट इंप्लांट के चलते होने वाले कैंसर से जुड़ी कुल 359 रिपोर्ट प्राप्त हुईं। जिनमें ALCL डवलप हो चुका था।
इन रिपोर्ट में 9 मौतों की पुष्टि ब्रेस्ट कैंसर के कारण नहीं, बल्कि रोग प्रतिरोधी तंत्र में असाध्य और अलग किस्म का कैंसर के चलते हुई हैं। ‘एनाप्लास्टिक लार्ज-सेल लिम्फोमा’ के रूप में इंप्लांट से जुड़ा कैंसर स्तन में फैल जाता है। आमतौर पर ‘स्कार टिश्यू’ के कैप्सूल में पाया जाने वाला यह स्वरूप जानलेवा नहीं होता है और इसका इलाज भी हो सकता है लेकिन इंप्लांट के बाद यह खतरनाक रूप में बदल जाता है।
करीब 3 लाख महिलाओं ने स्तनों इंप्लांटेशन कराया
अमेरिकन सोसायटी ऑफ प्लास्टिक सर्जन के अनुसार, अमेरिका में साल 2016 के भीतर करीब 2 लाख 90 हजार महिलाओं ने स्तनों का आकार बढ़ाने के लिए इंप्लांटेशन कराया था, जिनमें से 1 लाख 09 हजार महिलाओं ने ब्रेस्ट कैंसर के बाद उनका रिकंस्ट्रक्शन कराया। अधिकांश मामलों में ‘लिम्फोमा’ की शिकायत मिलने पर ही इंप्लांट को हटाया जाता है और उन टिश्यूज को भी हटा दिया जाता है जो इंप्लांट स्थल के आसपास बीमारी बढ़ाते हैं। इनमें से कुछ महिलाओं को ‘कीमोथैरेपी’ और ‘रेडिएशन’ तक कराना पड़ा।
कैसे पता चला कैंसर का
इस दुर्लभ कैंसर का पता तब चलता है जब इंप्लांट कराने वाली महिलाओं को स्तन में गांठ, सूजन, दर्द या रक्तस्राव होता है। एफडीए यह नहीं बता पाया कि ऐसे कितने मामले हैं क्योंकि अधिकृत रिपोर्टिंग बहुत कम मामलों की हुई है। अधिकांश महिलाएं ‘टैक्चर्ड इंप्लांट’ कराती हैं, जबकि सबसे अधिक शिकायतें इसी में पाई गई हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया, मेडिसिन के शोधकर्ता और प्लास्टिक सर्जन डॉ. एलेक्स के. वोंग ने बताया कि जब इस तरह के इंप्लांट को हटाया जाता है तो ‘छीलने की ध्वनि’ स्पष्ट सुनी जा सकती है जबकि सहज या स्मूथ इंप्लांट में ऐसा नहीं होता है।
भारत में तेजी से बढ़ा है ब्रेस्ट इंप्लांट
भारत में पहली बार 1973 में ब्रेस्ट सर्जरी हुई थी और गोपनीयता के कारण इंप्लांट कराने वाली महिला का नाम छुपाया गया था। लेकिन अब देश में इसका चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है। साल 2010-11 के दौरान ब्रेस्ट इंप्लांट सर्जरी के मामले में भारत का स्थान दुनिया में सातवें नंबर पर आ चुका है।
क्या है ALCL
एनाप्लास्टिक लार्ज-सेल लिंफोमा (ALCL) बाकी लिंफोमा की तरह ही रेयर टाइप नॉन हॉग्किन लिंफोमा होता है। ये लिफैटिक सिस्टम में कैंसर होता है जो कि बॉडी के इम्यून सिस्टिम का पार्ट है। ये तब डवलप होता है जब व्हाइट ब्लड सेल्स जिन्हें टी-सेल लिंफोसिटिक्स कहते हैं, अनकंट्रोल्ड वे में डिवाइड हो जाते हैं।
ALCL के लक्षण-
* थकान होना, वजन कम होना, भूख कम लगना, रात में पसीना आना, बॉडी का टम्प्रेचर हाई होना ये सब एनाप्लास्टिक लार्ज-सेल लिंफोमा के लक्षण है।
ALCL का इलाज-
* ये बहुत जल्दी बढ़ता है ऐसे में कीमोथेरपी तुरंत लेनी चाहिए। कई लोग रेडियोथेरेपी या फिर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट भी करवा सकते हैं। ये कीमोथेरपी के जरिए अच्छे से दूर किया जा सकता है।
डॉक्टरों का सुझाव
एफडीए ने सुझाव दिया है कि इंप्लांट सर्जरी कराने के काफी समय बाद यदि महिलाओं में स्तन से संबंधी कोई शिकायत आनी शुरू होती है तो डॉक्टरों को तुरंत ‘लिम्फोमा’ की संभावनाओं की जांच करनी चाहिए।