ससुराल वालों को अपना बनाने के 10 तरीके 

Samachar Jagat | Thursday, 30 Jun 2016 11:42:39
10 ways to build their own laws

पति से हो या उसके परिवार से, रिश्ता प्यार और सूझबूझ से ही निभता है, तू-तू मैं-मैं और मुंहजोरी से नहीं। अच्छी पत्नी, अच्छी बहू, अच्छी देवरानी, अच्छी कुकरी .. बनने के लिए जरूरी है आपका समझदार होना।

भले ही सुनने में अजीब लगे, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी सबको पारपंरिक बहु ही पसंद होती है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि जो ससुराल में सबकी जी-हजूरी करे और पेचीदा से पेचीदा मामलों को चुटकी में हल करने में माहिर हो। साथ ही हो गाय की तरह सीधी। सच यह भी है कि रातों-रात अपना अस्तित्व नहीं बदला जा सकता। ससुराल में सबकी चहेती बनना है और टेंशन फ्री रहना है, तो थोड़ा बदलना जरूरी है।
इसका मतलब यह कतई नहीं कि आप स्वयं से अलग हो जाएं। अपनी बेबाकी, बिंदास व्यवहार या खुलेपन के साथ लज्जा, शालीनता व सुरुचि को भी शुमार कर लें। यह भी नहीं कि ससुराल में पहले दिन से घूंघट निकालकर घर-गृहस्थी के हर छोटे-बड़े काम में जुट जाएं। आपकी कोशिश सब की चहेती बनने की है और वह भी लंबी पारी में। इन दोनों चाहतों को पूरा करेगा आपका व्यवहार। मायका तो सदा साथ रहेगा, लेकिन सुसराल, जहां आप अपनों को छोड़कर गई हैं, वहां कौन आपका अपना होगा?
 
1-जल्दी उठना और पैर छूना-

पढऩे-सुनने में पुरानी घिसीपिटी बातें लगें, लेकिन दम है इनमें। ससुराल में सुबह जल्दी उठना, बड़ों के पैर छूकर अभिवादन करना भी एक पारम्परिक नियम है। इस नियम में बंधती नववधू की नई तस्वीर ससुरालवालों का दिल जीत लेती है। पहली छवि तो अच्छी बना ली आपने। अब बारी है दूसरों की नजरों में अपनी अच्छी छवि बनाने की। नई बहू हैं तो आप केंद्र में रहेंगी। ऐसे में आपकी हर बात बहुत बारीकी से ध्यानपूर्वक देखी सुनी जाएगी। यही वह समय होता है, जब आपके बारे में राय कायम की जाती है और वही जिंदगी भर बनी रहती है। ऐसे में परिवार में किसी मसले पर बात चल रही हो और अपनी राय देने को कहा जाए तो पूरा ब्योरा ध्यान से सुनें, समझें और यदि जरूरी हो, तो ही जवाब दें। बेवजह बहस करना ठीक नहीं है।
2-सकारात्मक माहौल बनाएं-

खुशहाली का पहला नियम है घर में सकारात्मक माहौल। इसके लिए नितांत आवश्यक है मुस्कान और हंसी। इसकी जिम्मेदारी अगर नव वधू निभाए तो सभी को अच्छा लगेगा। आपको बता दें कि ससुराल पक्ष की नई-नवेली से अपेक्षा रहती है कि वो उनके परिवार में रच बस जाए। उनकी हर खुशी, हर गम में सक्रिय भागीदारी निभाए। मौका खुशी का है, तो चेहरे पर मुस्कान जरूर रखिए। छोटी-छोटी बातों पर मुंह फुलाने से आप सामने वाले पर इंप्रेशन नहीं जमा पाएंगी। इसलिए जब भी कोई खुशी का मौका हो, तो उसमें भरपूर उल्लास के साथ सहयोग दें। लेकिन कोई झगड़ा हो, तो उसमें शामिल न हों।
जरा सोचिए ससुराल में छोटे-बड़े से आपका व्यवहार खिंचा-खिंचा होगा, तो आगे कौन आपके परिवार को अपनत्व देगा? बिना बड़े-बुजुर्गों की छत्रछाया में बच्चा रिश्तों की गहराई से दूर हो जाएगा। कौन मुसीबत के समय आपके साथ खड़ा रहेगा? सुख-दुख में कौन साथ देगा? ससुराल में किसे अपना कहेंगी? पति के दिल-दिमाग पर कैसे छाएंगी?... इतना ही नहीं और भी बहुत कुछ। शादी के बाद ससुराल में कदम रखते ही थोड़ा अपने को बदलना पड़ेगा। हौले-हौले और नए रिश्तों में चालाकी नहीं, सोचा-समझा प्यार और खुद को अपनत्व का तड़का लगाएं। फिर देखिए कैसे सबकी जुबान पर नई बहूरानी, नई भाभी, नई चाची, नई बड़ी मां, नई मामी का नाम होगा। ये अपेक्षाएं पारंपरिक के साथ सामयिक भी हैं। नीतिबद्ध हैं तो व्यवहारिक भी हैं। ये ऐसे कर्तव्य भी हैं जो मनपसंद अधिकार बन जाते हैं। अगर आप इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखेंगी, तो ससुराल की प्यारी दुलहन और बहू बन सकती हैं।
3-किस्मत को न कोसें-

हो सकता है ससुराल आपके मनमुताबिक हो। जहां आपकी निजी जिंदगी से लेकर घर के हर छोटे-बड़े मसले पर आपकी बात मानी जाती हो या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ससुराल इसके विपरीत हो जहां आपको दूसरे के अनुसार ही चलना पड़े। ऐसी परिस्थिति में ससुराल वालों या अपनी किस्मत को न कोसें। सूझ-बूझ से काम लें। जान लें कि प्यार से किसी को भी जीता जा सकता हैं। नए घर में प्रवेश करते ही इस बात को गांठ बांध लें कि मायके में दिनचर्या अलग थी और ससुराल में अलग होगी। यह सोच आपको दुखी नहीं होने देगी। साथ ही ससुराल के हर सदस्य के साथ सामंजस्य बिठाने में मददगार साबित होगी।
4-ससुराल की दिनचर्या अपनाएं-

याद रखें, आपकी एक पहल ससुराल के अन्य लोगों को आपका फैन बना देगी। घर की दिनचर्या और समय सारिणी में अपने आपको एडजस्ट करना बहुत जरूरी है। जैसे कि समय पर नाश्ते-खाने की मेज पर पहुंचाना तथा सासू मां और ननद रानी के साथ खाना या नाश्ता बनाने में भी मदद करना, पारिवारिक संध्या या सुबह की पूजा में शामिल होना, मात्र दर्शक बनकर ही नहीं, वरन सहयोगी बनकर।
5-रीति-रिवाज अपनाएं-

ससुराल वाले बहू को अच्छे कम ही लगते हैं। नए घर जाते ही अपनी सहेलियों और मायके में ससुराल की बुराइयों के गाना गाना न शुरू कर दें। पहले से ऐसी राय कतई न बनाएं अन्यथा आप चाहकर भी किसी से मधुर संबंध नहीं बना पाएंगी। दूसरे परिवार को समझें। उनके रीति-रिवाज, तौर-तरीके, रहन-सहन, खान-पान, बोली व्यवहार को ध्यान से देखें और अपनाने की कोशिश करें।
6-देने से ही मिलेगी इज्जत-

आप चाहती हैं कि नई दुलहन की इज्जत हो। याद रहे इज्जत देने से ही इज्जत मिलती है। अगर घर में विपरीत परिस्थितियों ने धावा बोल दिया है। मसलन सासू मां बीमार पड़ गईं, ननद का रिश्ता तय करने में दिक्कतें आ रही हों या किसी भी तरह की विपदा या कलह या कर्ज जी का जंजाल बन गया हो। ऐसे समय में सही निर्णय लेने वाली नव वधू को बड़ा सम्मान मिलता है। ऐसे समय क्या व्यवस्था हो? संकट से कैसे उबरें? इस विषय पर यदि घर के अन्य सदस्य उहापोह की स्थिति में हों और नव वधू कोई निर्णय ले सकती हो, तो उसे चुप नहीं रहना चाहिए। नए घर में सबसे तालमेल बिठाने में अपनी निर्णयशक्ति का परिचय दें।
7-सीखने का प्रयास करें-

ससुराल हो या मायका आदमी की इज्जत काम से ही होती है। निठल्ले या आलसी लोगों को कोई पसंद नहीं करता। यदि कोई काम नहीं आता, तो सीखने का प्रयास करें। आपकी लगन देखकर लोग प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाएंगे। यह गुर आपको सास, चाची सास, ननद, देवरानी, जेठानी....सब का मन जीतने में मददगार होगा।
8-रिश्तों को महकाएं-

खुद पर घमंड न करें। यह बदलाव जहां आपको सुकून प्रदान करेगा, वहीं रिश्तों को महकाने का काम करेगा। खासतौर से ससुराल में। मसलन अगर आप रूपवती हैं, तो इससे घमंड की बदबू नहीं आनी चाहिए। ऐसे में आपकी ननद जेठानी आदि में हीन भावना जगेगी और धीरे-धीरे नफरतें तानों से बढ़कर भारी कलह का रूप ले लेंगी। दूसरी ओर स्थिति उलट हुई। यानी यदि आपकी जेठानी या ननद आपसे अधिक रूपवती है, तो मन में हीन भावना न आने दें, बल्कि खुले दिल से उनके सौंदर्य की तारीफ करें। अपनी इस कमी की भरपाई आप अपने अन्य गुणों से कर सकती हैं। यदि आप पाक कला में प्रवीण हैं, तो निश्चित ही ससुराल की चहेती बन सकती हैं। खाना बनाते समय घर के सदस्यों की पसंद-नापसंद का ध्यान रखें। खाना बनाने से पहले सास से पूछ लें कि खाने में क्या बनाना है।
9-सभी के साथ तालमेल बैठाएं-

नए घर में नए सदस्यों के साथ तालमेल बिठाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं। ससुराल में चुप रहने वाली महिलाओं को अच्छा समझा जाता है। जहां तक संभव हो चुप रहें, लेकिन समय की नजाकत को पहचानएं। लकीर का फकीर न बनिए। मायके से आपको यह सीख मिली होगी कि बात कैसी भी हो सिर झुकाकर चुप्पी साध लो। नहीं, यह थोड़ा गलत हो जाएगा। लेकिन यदि कोई आपकी चुप्पी का फायदा उठाता है, तो उसे वहीं रोकिए। सामने वाला अंट-शंट बोलता है, तो उसे उसकी ही भाषा में चाशनी लगाते हुए जवाब दें, ताकि अगली बार वह सोच समझकर बोले।
10-तुलना न करें-

ससुराल के हर सदस्य का दिल जीतना चाहती हैं, तो उन्हें अपने मां-पिता से तुलनात्मक तराजू में तोलते हुए नीचा न दिखाएं। याद रहे कि यह तुलनात्मक बातें आपसी रिश्तों को तार-तार करने में देर नहीं लगाएंगी। इसका सीधा प्रभाव आप और आपके पति के रिश्ते पर पड़ेगा। सबसे अहम है कि पति के सामने उसके माता-पिता की बुराइयों का व्याख्यान नहीं करें। याद रहे बेटा-बेटी मां-बाप के ही सगे होते हैं और बुराइयां चुगली-चपाटी पति-पत्नी के रिश्ते को खोखला कर सकती हैं।
 



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.