कुछ इस तरह बॉलीवुड में खलनायक से नायक बने विनोद खन्ना

Samachar Jagat | Thursday, 27 Apr 2017 03:03:12 PM
Vinod Khanna Something like this Turned from villain to hero in Bollywood

मुंबई। बतौर खलनायक अपने करियर का आगाज कर नायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचने वाले सदाबहार अभिनेता विनोद खन्ना ने अपने अभिनय से दर्शको के बीच अपनी अमिट छाप छोड़ी। छह अक्टूबर 1946 को पाकिस्तान के पेशावर में जन्में विनोद खन्ना ने स्नातक की शिक्षा मुंबई से की। इसी दौरान उन्हें एक पार्टी के दौरान निर्माता-निर्देशक सुनील दत्त से मिलने का अवसर मिला।

सुनील दत्त उन दिनों अपनी फिल्म 'मन का मीत' के लिए नए चेहरों की तलाश कर रहे थे। उन्होंने फिल्म में विनोद से बतौर सहनायक काम करने की पेशकश की जिसे विनोद ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

 घर पहुंचने पर विनोद को अपने पिता से काफी डांट भी सुननी पड़ी। विनोद ने जब अपने पिता से फिल्म में काम करने के बारे में कहा तो उनके पिता ने उन पर बंदूक तान दी और कहा, यदि तुम फिल्मों में गए तो तुम्हें गोली मार दूंगा। बाद में विनोद की मां के समझाने पर उनके पिता ने विनोद को फिल्मों में दो वर्ष तक काम करने की इजाजत देते हुए कहा यदि फिल्म इंडस्ट्री में सफल नहीं होते हो तो घर के व्यवसाय में हाथ बंटाना होगा।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म 'मन का मीत' टिकट खिडक़ी पर हिट साबित हुई। फिल्म की सफलता के बाद विनोद को आन मिलो सजना, मेरा गांव मेरा देश, सच्चा झूठा जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकायें निभाने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्म की सफलता के बावजूद विनोद खन्ना को कोई खास फायदा नहीं पहुंचा।

विनोद को प्रारंभिक सफलता गुलजार की फिल्म मेरे अपने से मिली। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि गुलजार ने बतौर निर्देशक करियर की शुरूआत की थी। छात्र राजनीति पर आधारित इस फिल्म में मीना कुमारी ने भी अहम भूमिका निभाई थी, एक फिल्म में विनोद खन्ना और शत्रुध्न सिंहा के बीच टकराव देखने लायक था।

वर्ष 1973 में विनोद खन्ना को एक बार फिर से निर्देशक गुलजार की फिल्म अचानक में काम करने का अवसर मिला जो उनके करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी। फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य है कि इस फिल्म में कोई गीत नही था। वर्ष 1974 में प्रदर्शित फिल्म इम्तिहान विनोद के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी।

वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म अमर अकबर ऐंथोनी विनोद के सिने करियर की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुयी। मनमोहन देसाई के निर्देशन में बनी यह फिल्म खोया पाया फार्मूले पर आधारित थी। तीन भाइयों की जिंदगी पर आधारित इस मल्टीस्टारर फिल्म में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ने भी अहम भूमिका निभाई थी।

वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म कुर्बानी विनोद खन्ना के करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुयी। फिरोज खान के निर्माण और निर्देशन में बनी इस फिल्म में विनोद खन्ना ने अपनी दमदार अभिनय सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित किये गये।

 

अस्सी के दशक में विनोद शोहरत की बुलंदियो पर जा पहुंचे और ऐसा लगने लगा कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को उनके भसहासन से विनोद उतार सकते हैं लेकिन विनोद ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया और आचार्य रजनीश के आश्रम की शरण ले ली।

वर्ष 1987 में विनोद खन्ना ने एक बार फिर से फिल्म इंसाफ के जरिये फिल्म इंडस्ट्री का रूख किया। वर्ष 1988 में प्रदर्शित फिल्म दयावान विनोद के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल है। हालांकि यह फिल्म टिकट खिडक़ी पर कामयाब नहीं रही लेकिन समीक्षको का मानना है कि यह फिल्म विनोद खन्ना के करियर की उत्कृष्ठ फिल्मों में एक है।

फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद विनोद खन्ना ने समाज सेवा के लिए वर्ष 1997 राजनीति में प्रवेश किया और भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से वर्ष 1998 में गुरदासपुर से चुनाव लडक़र लोकसभा सदस्य बने। बाद में उन्हें केन्द्रीय राज्य मंत्री के रूप में भी उन्होंने काम किया।

वर्ष 1997 में अपने पुत्र अक्षय खन्ना को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिये विनोद खन्ना ने फिल्म हिमालय पुत्र का निर्माण किया। फिल्म टिकट खिडक़ी पर बुरी तरह से नकार दी गयी। दर्शको की पसंद को ध्यान में रखते हुये विनोद ने छोटे पर्दे की ओर भी रूख किया और महाराणा प्रताप और मेरे अपने जैसे धारावाहिकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया।
 



 

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