फिल्म का नाम- रॉक ऑन 2
डायरेक्टर- शुजात सौदागर
स्टार कास्ट- फरहान अख्तर, श्रद्धा कपूर, अर्जुन रामपाल, प्राची देसाई, पूरब कोहली, शशांक अरोड़ा
अवधि- 2 घंटा 19 मिनट
सर्टिफिकेट- U/A
रेटिंग-1.5 स्टार
साल 2008 में फरहान अख्तर होम प्रोडक्शन के बैनर तले अभिषेक कपूर के डायरेक्शन में म्यूजिकल फिल्म 'रॉक ऑन' बनायी थी। फिल्म को काफी सराहना मिली थी। रॉक ऑन' को उस साल की बेस्ट फिल्म का और अर्जुन रामपाल को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवार्ड मिला था। उसी क़िस्त को आगे बढ़ते हुए फरहान अख्तर ने 'रॉक ऑन 2' बनाई है।
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आइए फिल्म की समीक्षा करते हैं-
कहानी-
फिल्म की कहानी पिछली फिल्म 'रॉक ऑन' से 8 साल आगे बढ़ती है, जिसमें सारे किरदार जो (अर्जुन रामपाल), आदित्य (फरहान अख्तर) और उसकी वाइफ साक्षी (प्राची देसाई), के डी (पूरब कोहली) एक बार फिर से मिलते हैं। 'जो' (अर्जुन रामपाल) अब एक म्यूजिक रियलिटी शो के जज होने के साथ साथ म्यूजिक कंपनी के मालिक भी हैं, वही के डी भी उनके साथ काम करता है ।लेकिन आदि अब मुम्बई को छोड़कर मेघालय में रहने लगा है। कुछ ऐसी परिस्थितियां आती हैं जिसकी वजह से आदि को मेघालय छोड़कर मुम्बई आना पड़ता है।
इसी बीच बैंड में नयी सिंगर जिया शर्मा (श्रद्धा कपूर ) और उदय (शशांक अरोड़ा) की एंट्री भी होती है। अचानक जिया और आदित्य का कनेक्शन निकल आता है। जिया बैंड से जुड़ना चाहती है लेकिन क्लासिकल म्यूजिशियन पिता (कुमुद मिश्रा) को पॉप सिंगिंग पसन्द नहीं। खैर जैसे तेज़ मैजिक बैंड' फिर से बनता है लेकिन कहानी का अंत देखने के लिए आपको सिनेमाघर तक जाना पड़ेगा।
स्क्रिप्ट -
जब भी किसी फिल्म का सीक्वल बनता है तो पुरानी वाली से उसकी तुलना अवश्य होती हैis मामले में 'रॉक ऑन2' कमज़ोर रही है। कौन सा किरदार आखिरकार क्या करना चाहता है, ये समझ में ही नहीं आता है। कांसेप्ट क्लियर नहीं है। कैरक्टर्स के ऊपर और ज्यादा काम किया जा सकता था
म्यूजिक -
फिल्म के गाने और म्यूजिक भी औसत है। लेकिन किसी भी मामले में रॉक न से ज़्यादा नहीं। फरहान अख्तर का रोक्किंग जादू ढीला रहा।
कमजोर कड़ियां-
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी बोर करने वाली कहानी है, जो अपनी ही धुन में चलती चली जाती है। फिल्म में कहानी जब भी थोड़ी सी भी रफ्तार पकड़ती है, अचानक से कुछ ऐसा होता है कि अगला सीक्वेंस फिर से धीमा होने लगता है। एक वक्त पर बाप- बेटी, बहन- भाई, दोस्त- दोस्त से रिलेटेड कहानी को दर्शाने की कोशिश की गयी है. लेकिन मल्टीटास्किंग के चक्कर में कुछ भी सटीक सा नहीं बैठ पाता। फिल्म के सेकंड हाफ में भी ऐसा ही प्रतीत होता है कि आखिरकार कहानी शुरू कब होगी? यहां तक कि इमोशनल सीन्स भी आपको भावुक नहीं कर पाते।
एक्टिंग -
फरहान अख्तर ने फिल्म में अच्छा काम किया है। वहीँ अर्जुन रामपाल, कुमुद मिश्रा, पूरब कोहली, शशांक अरोड़ा का काम ठीक है। श्रद्धा ने किरदार पर कम और सिंगिंग पर ज्यादा फोकस किया है।
क्यों देखें-
अगर आप फरहान अख्तर श्रद्धा या अर्जुन रामपाल के फैन है तो एक बार फिल्म को देख सकते हैं। फिल्म की लोकेशंस अच्छी हैं। मेघालय की वादियों को देखकर आप वहां जाकर घूमने के बारे में जरूर सोच पाएंगे।
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