Manoj Kumar Sharma: भारतीय सिनेमा के गौरवशाली इतिहास में 90 प्रतिशत फिल्में मसाला और व्यवसायी दृष्टिकोण से बनाई जाती है। इसके पीछे वजह स्पष्ट होती है कि फिल्मकार अपनी फिल्म की लागत निकालकर कुछ मुनाफा कमाना चाहता है।
लेकिन कुछ फिल्मकार भीड़ से अलग हाई रिस्क वाला काम करते हैं। उन्हें न पैसे डूबने का डर होता है और न ही मुनाफे का। इसी श्रेणी के फिल्मकारों में से एक हैं आशुतोष गोवारिकर।
बॉलीवुड में आशुतोष गोवारिकर का नाम एक ऐसे फिल्मकार के रूप में पहचाना जाता है जिनके द्वारा निर्मित व निर्देशित फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाई है।
आशुतोश गोवारिकर का जन्म 15 फरवरी, 1964 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। गोवारिकर ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1984 में प्रदर्शित केतन मेहता की फिल्म 'होली' से बतौर अभिनेता की थी। इस फिल्म में आमिर खान ने भी अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद आशुतोष गोवारिकर ने टीवी पर प्रसारित कुछ सीरियल और फिल्मों में काम किया था।
वर्ष 1993 में प्रदर्शित फिल्म 'पहला नशा' के जरिए आशुतोष ने निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। इस फिल्म में दीपक तिजोरी, रवीना टंडन, पूजा भट्ट और परेश रावल ने अहम भूमिकाओं में थे। ये बात और है कि कमजोर पटकथा के कारण यह फिल्म टिकट खिड़की पर ज्यादा कुछ कमाल नहीं दिखा पाई।
इसके बाद वर्ष 1995 में प्रदर्शित फिल्म 'बाजी' बतौर निर्देशक आशुतोष गोवारिकर के करियर में मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म में आमिर खान ने एक जाबांज पुलिस अधिकारी के रोल में दिखाई दिए। आमिर खान और ममता कुलकर्णी की जोड़ी लोगों को पसंद आई और फिल्म हो गई सुपरहिट।
'लगान' ने बढ़ाया रूतबा:
'बाजी' की सफलता के साथ ही आशुतोष गोवारिकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। इसके बाद वर्ष 2001 अाशुतोष के लिए ऐसी अमिट छाप लेकर आया जो जिसका जिक्र भारतीय इतिहास में अगले सौ सालों बाद भी होगा। 2001 में प्रदर्शित ब्लॉकबस्टर फिल्म 'लगान' ने उन्हें उच्च श्रेणी के फिल्मकारों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।
'फिल्मफेयर' और 'राष्ट्रीय पुरस्कार' पर जमाया कब्जा:
'लगान' आशुतोष गोवारिकर के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। 'लगान' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इस फिल्म के लिए आशुतोष को सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। यही नहीं 'लगान' राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
NRI's के दिलों में प्रबल की देशप्रेम की भावना:
वर्ष 2004 में शाहरुख खान को लेकर आशुतोष गोवारिकर ने सुपरहिट फिल्म 'स्वदेश' का निर्देशन किया। हालांकि यह फिल्म कमाई के मामले में तो बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा सफल नहीं हुई लेकिन, यह फिल्म दर्शकों को जरुर पसंद आई। साथ ही इस फिल्म में छिपा संदेश भी लोगों को खासा पसंद आया। इसमें शाहरुख एक एनआरआई की भूमिका में थे। जो अपने गांव को समस्या से जूझते हुए देखकर उसके उत्थान के लिए काम करता है।
'जोधा-अकबर' को बड़े पर्दे पर किया जीवंत:
आशुतोश गोवारिकर की इतिहास में खासी रुचि रही है। ऐतिहासिक घटनाओं को पर्दे पर उतारना उन्हें बखूबी आता है। 'लगान' और 'स्वेदश' की काल्पनिक कहानी के बाद आशुतोष ने वर्ष 2008 में अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'जोधा-अकबर' का निर्माण किया और निर्देशन किया। इस भारी बजट की फिल्म के सहारे उन्होंने इतिहास को जीवंत करने का बीड़ा उठाया।
अाशुतोष अपने इस प्रयास में सफल भी रहे। फिल्म लोगों को खासी पसंद आई। इस फिल्म में जोधा बाई की भूमिका ऐश्वर्या राय और अकबर की भूमिका ऋतिक रौशन ने निभाई। आशुतोष को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्माता-निर्देशक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस फिल्म के साथ ही हिंदी सिनेमा के पेटर्न में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला और यहीं से नए बदलाव की बयार भी बहनी शुरु हो गई।
इस बार प्रयोग कर जला बैठे हाथ:
साल 2009 में आशुतोष गोवारिकर ने प्रियंका चोपड़ा और हरमन बावेजा को लेकर 'व्हाट्स योर राशि' का निर्माण किया। इस फिल्म में अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा 12 अलग-अलग किरदारों में दर्शकों के सामने आई। एक अलग सब्जेक्ट पर बनी यह फिल्म उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सकी और बॉक्स ऑफिस पर धराशाई हो गई।
वर्ष 2010 में आशुतोष गोवारिकर ने एक और पीरियड फिल्म 'खेले हम जी जान से' का निर्माण करने का जोखिम उठाया। इस फिल्म में अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण की मुख्य भूमिका थी। लेकिन दुर्भाग्यवश यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी और फ्लॉप साबित हुई।
'मोहन जोदाड़ो' के प्रदर्शन से हुई निराशा:
साल 2016 में आशुतोश गोवारिकर के साथ 'मोहन जोदाड़ो' के रुप में बड़ा हादसा हुआ। बिग बजट वाली यह बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। इस फिल्म ने गोवारिकर की उम्मीदों पर पानी सा फेर दिया। ऋतिक रौशन का स्टारडम भी इस फिल्म को फ्लॉप होने से नहीं बचा पाया।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि आशुतोश गोवारिकर का सफर बेदह शानदार रहा। अपने पूरे करियर में उन्होंने 'हाई रिस्क' और वाली फिल्मों के निर्माण किए। लीक से हटकर काम करने की उनकी शैली ही उन्हें अन्य निर्देशकों से अलग बनाती है। कई फिल्मों के परिणाम सकारात्मक रहे तो कुछ फिल्मों के परिणाम उम्मीद के विपरित भी रहे, लेकिन इससे उनके हौंसले में कोई कमी नहीं आई। अाशुतोष निरन्तर दर्शकों को कुछ नया परोसते रहते हैं। उम्मीद है वह आगे भी इसी प्रकार की रोचक फिल्में बनाते रहेंगे और आवाम का मनोरंजन करते रहेंगे।
आशुतोष गोवारिकर को उनके जन्मदिन पर samacharjagat.com की ओर से ढेरों बधाई।