भारतीय सिनेमा जगत में अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली कई अभिनेत्रियां हुई और उनके अभिनय के दर्शक आज भी कायल हैं, लेकिन पहली ड्रीम गर्ल देविका रानी को आज कोई याद भी नहीं करता।
60 दशक पहले बॉलीवुड में रोमांस का मतलब सिर्फ दो फूलों के मिलने वाला सीन हुआ करता था या फिर पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाया करते थे। वहीं आजाद ख्यालों वाली देविका रानी हिंदी फिल्मों की पहली हिट हीरोइन बनी। 9 मार्च 1994 को देविका रानी दुनिया को अलविदा कह गई। लेकिन देश की अन्य महिलाओं को एक्टिंग क्षेत्र में कदम रखने के लिए प्रेरणा दे गई। तो चलिए आपको बताते है देविका रानी के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें..
देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को वाल्टेयर यानि की विशाखापत्तनम में हुआ था। वे विख्यात कवि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर के वंश से सबंध रखती थीं श्री टैगोर उनके चचेरे परदादा थे। देविका रानी के पिता कर्नल एम. एम.चौधरी चेन्नई के पहले सर्जन जनरल थे। उनकी माता का नाम श्रीमती लीला चौधरी था।
1920 में स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के बाद देविका रानी नाट्य शिक्षा ग्रहण करने के लिये लंदन चली गईं और वहां वे रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट और रॉयल एकेडमी ऑफ म्युजिक नामक संस्थाओं में भर्ती हो गईं। वहां उन्हें स्कालरशिप भी प्रदान किया गया। उन्होंने आर्किटेक्चर, टेक्सटाइल एवं डेकोर डिजाइन विधाओं का भी अध्ययन किया और एलिजाबेथ आर्डन में काम करने लगीं।
देविका सिगरेट और शराब के नशे की आदी होने और शॉर्ट टेम्पर होने के कारण देविका को ड्रैगन लेडी के नाम से भी जाना जाता था।
हिमांशु से देविका की पहली मुलाकात 1928 में हुई थी। हिमांशु राय ने देविका रानी को लाइट ऑफ एशिया नामक अपने पहले प्रोडक्शन के लिया सेट डिजाइनर बना लिया। इसके बाद 1929 में देविका ने हिमांशु की शॉर्ट फिल्म अ थ्रो ऑफ डाइस (1929) के लिए बतौर कॉस्टयूम डिजाइनर काम किया था। वर्ष 1929 में उन दोनों ने विवाह कर लिया।
वर्ष 1933 में उनकी फिल्म कर्मा प्रदर्शित हुई और इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग देविका रानी को कलाकार के स्थान पर स्टार सितारा कहने लगे।
इस तरह देविका रानी भारतीय सिनेमा की पहली महिला फिल्म स्टार बनीं। कर्मा किसी भारतीय द्वारा बनाई गई पहली अंग्रेजी टॉकी थी। इस फिल्म में देविका ने किसिंग सीन दिया गया था। इस फिल्म में हिमांशु लीड एक्टर भी थे। दिलचस्प बात यह है कि हिमांशु राय और देविका रानी द्वारा दिए गए इस किसिंग सीन की टाइमिंग 4 मिनट थी, जो 83 साल बाद भी हिंदी सिनेमा में एक रिकॉर्ड है।
देविका रानी ने फिल्म कर्मा के अलावा जवानी की हवा (1935) जन्म भूमि (1936) अछूत कन्या (1936) ममता और मियां बीवी (1936) जीवन नैया (1936) सावित्री (1937) वचन (1938) और अनजान (1941) जैसी कई फिल्में की थीं।
कर्मा की रिलीज के बाद हिमांशु ने बॉम्बे टॉकीज नाम से स्टूडियो स्थापित किया और 5-6 साल तक कई सुपरहिट फिल्में दीं। इनमें से कई फिल्मों में देविका ने बतौर लीड एक्ट्रेस काम किया। 1940 में हिमांशु राय के निधन के बाद 1945 में देविका रानी ने रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोएरिच से दूसरी शादी कर ली। शादी के बाद दोनों मनाली चले गए।
1958 में भारत सरकार ने देविका रानी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा, भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फाल्के सबसे पहले (1969 में) उन्हें ही मिला था।
1990 में देविका को सोवियत रूस ने सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड से सम्मानित किया और 9 मार्च 1994 को भारतीय सिनेमा की यह पहली एक्ट्रेस दुनिया को अलविदा कह गई। फरवरी 2011 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा उनकी याद में एक डाक टिकट भी जारी किया था।