राजस्थान का एक 'दिवाना' शासक जिसने अपनी महबूबा के लिए बनवाया 'धौलपुर का ताज'

Samachar Jagat | Tuesday, 14 Feb 2017 06:00:01 AM
love story behind gajra ka maqbara of dholpur
धौलपुर स्थित गजरा का मकबरा जिसे धौलपुर का ताजमहल भी कहा जाता था। इसे धौलपुर के शासक भगवत सिंह ने अपनी प्रेमिका की याद में बनवाया था। प्रशासन की नजरअंदाजी के कारण काफी वक्त से क्षतिग्रस्त स्थिति में है।

विक्रम सिंह 'विशेष'। देश में जब कभी भी प्रेम की निशानी की बात आती है, तो हर किसी के जेहन में बरबस ही विश्व धरोहर में शुमार आगरा के ताजमहल की तस्वीर उभरने लगती है। शाहजहां ने अपनी महबूबा मुमताज की याद में संगमरमरी पत्थरों से ताजमहल का निर्माण करवाया था। लेकिन इस आलेख में हम आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान के एक दिवाने शासक की प्रेम कहानी जो आज भी एक मकबरे में जिंदा है।

हर खंडहर कहता है अपनी व्यथा, 
जो महाशून्य में विलीन हो गए।

ये एक कवि की पंक्तियां है, जो कहना चाहती हैं, कि कथाएं और निशानियां कभी समाप्त नहीं होती, उसमें भी अगर प्यार की खुशबू हो तो महक बरसों बरस तक बरकरार रहती है। प्रेम की कुछ ऐसी ही निशानी लिए है महाराणा स्कूल परिसर में करीब डेढ़ सदी पूर्व बना गजरा का मकबरा। इसे अगर धौलपुर का ताज कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि इसमें भी मोहब्बत का वही जज्बा, चाहत, गहराई, समर्पण और स्थापत्य है। 

इस प्रचलित ऐतिहासिक प्रेम कहानी के किरदार थे धौलपुर रियासत के महाराजा भगवंत सिंह। वर्ष 1836 में धौलपुर रियासत की राजगद्दी पर बैठे महाराजा भगवंत सिंह बेहद भावुक और रसिक प्रवृति के थे। उस समय उनके राज में एक प्रमुख अधिकारी थे सैयद मुहम्मद जिनकी पुत्री गजरा अत्यंत सुंदर, मोहक और नृत्य कलाओं में पारंगत थी। 

मुशायरे में हुई थी पहली नजर-ए-इनायत
कहा जाता है कि महाराजा भगवंत सिंह के दरबार में एक मुशायरा रखा, यही वो वक्त था जब गजरा को उन्होंने पहली बार देखा था। यही वो पल था जब दोनों एक दूसरे की मोहबत में कैद हुए। भगवंत सिंह और गजरा के बीच पहली नजर का यह इश्क धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया। महाराजा भगवंत सिंह, गजरा को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे इसके लिए उन्होंने सैयद मुहम्मद से इजाजत मांगी, जिस पर उन्होंने एक दफा साफ इनकार कर दिया। 

लेकिन भगवंत सिंह के निरंतर प्रयास रंग लाए और अंततः गजरा और महाराणा भगवंत सिंह एक हो गए। इसी के साथ गजरा महल की शान बन गई। गजरा बहुत अच्छी नर्तकी होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी थी। इसी कुशलता के चलते गजरा का राजकाज में भी दखल बढ़ता गया। गजरा का हर फैसला रियासत को मान्य था। दबे पांव धौलपुर रियासत के सरदारों में विरोध की भावना उत्पन्न होने लगी। लेकिन भगवंत सिंह की शख्सियत के आगे किसी की हिम्मत नहीं थी कि विरोध का स्वर बुलंद कर सके। महाराजा भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा पर पूरी तक आसक्त थे। 

इतिहास के जानकार बताते है कि भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने नृसिंह मंदिर के पास 1855 में एक खूबसूरत इमारत बनवाने का निर्णय लिया। आगरा से निकटता और अमर प्रेम की निशानी ताजमहल का इस इमारत पर प्रभाव पडा। इसलिए इसे ताजमहल जैसी शक्ल देने की कोशिश की गई।

ताजमहल की तर्ज पर धौलपुर के लाल पत्थर (सेंड स्टोन) से बनी इस इमारत में चारों ओर मीनारें, बीच के हिस्से चौकारें, बुलंद दरवाजा, चारों तरफ छोटे-छोटे महराब और मध्य में मकबरा स्थापित किया गया। उस समय बना यह मकबरा आज 'गजरा का मकबरा' नाम से प्रसिद्ध है। वर्ष 1859 के आसपास गजरा का इंतकाल हो गया। लेकिन प्यार की यह अनूठी निशानी आज भी एक अमर प्रेम की कहानी बयां करती नजर आती है।
 



 

यहां क्लिक करें : हर पल अपडेट रहने के लिए डाउनलोड करें, समाचार जगत मोबाइल एप। हिन्दी चटपटी एवं रोचक खबरों से जुड़े और अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें!

loading...
रिलेटेड न्यूज़
ताज़ा खबर

Copyright @ 2024 Samachar Jagat, Jaipur. All Right Reserved.