नई दिल्ली। महान चित्रकार अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शिष्य 'जैमिनी रॉय' को देश के महान चित्रकारों में गिना जाता है, जिन्होंने 20वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने समय की कला परम्पराओं से अलग एक नई शैली स्थापित की। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जैमिनी रॉय की पुण्यतिथि के मौके पर नजर डालते है उनकी जीवन पर।
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11 अप्रैल 1887 को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के बेलियातोर नामक गांव में जन्मे जैमिनी एक समृद्ध जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे। जैमिनी का चित्रकारी से बचपन से ही लगाव था। उनका बचपन गांव में ही बीता जिसका गहरा असर उनके चित्रकारी पर भी पड़ा। 16 वर्ष की आयु में जैमिनी ने कोलकाता के ‘गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आटर्स’ में दाखिल लिया जहां से मिले प्रशिक्षण ने जैमिनी रॉय को चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की। शुरुआत में पश्चिमी शैली में कलाकृति बनाने वाले जैमिनी का जल्द ही इससे मोह भंग हो गया और उन्होंने स्थानीय चीजों से प्रेरणा लेकर अपनी एक अलग शैली की चित्रकारी शुरू की।
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1920 के दशक के शुरुआत में उन्हें कला के ऐसे नये विषयों की तलाश थी, जो उनके ह्रदय के करीब थे। इसके लिए उन्होंने परंपरागत और स्थानिय स्रोतों जैसे लेखन शैली, पक्की मिट्टी से बने मंदिरों की कला वल्लरियों, लोक कलाओं की वस्तुओं और शिल्प कलाओं आदि से प्रेरणा ली। 1920 के बाद के वर्षों में उन्होंने ऐसे चित्र बनाये जो खुशनुमा ग्रामीण माहौल को प्रकट करते थे और जिनमें ग्रामीण वातावरण और जीवन की झलक थी। इस काल के बाद उन्होंने अपनी जड़ों से जुड़ी हुई वस्तुओं को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया था।
1938 में उनकी कला की प्रदर्शनी पहली बार कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के‘ब्रिटिश इंडिया स्ट्रीट’पर लगायी गयी। 1946 में उनके कला की प्रदर्शनी लन्दन में आयोजित की गयी और 1953 में न्यू यॉर्क सिटी में भी उनकी कला प्रदर्शित की गयी। कला के क्षेत्र में योगदान के लिये 1954 में भारत साकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। 1976 में‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण‘, संस्कृति मंत्रालय और भारत सरकार ने उनके कृतियों को बहुमूल्य घोषित किया।
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