नई दिल्ली। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जैमिनी राय की जयंती के मौके पर आज गूगल ने उनकी एक चित्र का डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी है। महान चित्रकार अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शिष्य जैमिनी राय को देश के महान चित्रकारों में गिना जाता है जो 20वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे। उन्होंने अपने समय की कला परम्पराओं से अलग एक नई शैली स्थापित की।
उनकी कला शैली पर भारतीय लोक कला का गहरा असर था। रॉय का जन्म 11 अप्रैल 1887 को पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के बेलियातोर में हुआ था। उन्होंने कोलकाता (तब कलकत्ता) को गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट में कला की शिक्षा ली थी।
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आर्ट स्कूल में कला के बंगाल स्कूल के संस्थापक अविंद्रनाथ टैगौर उनके गुरु थे और वाइस-प्रिंसिपल थे। रॉय को पश्चिमी कला की क्लासिक परंपरा का प्रशिक्षण मिला था लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने अपनी जड़ों की तलाश शुरू कर दी और लोक और आदिवासी कला से प्रेरणा लेकर रचनाकर्म शुरू कर दिया। माना जाता है कि रॉय की कला पर सबसे ज्यादा प्रभाव कालीघाट पाट स्टाइल का पड़ा था जिसमें मोटे ब्रश स्ट्रोक का उपयोग किया जाता है।
देश के प्रसिद्ध चित्रकार जैमिली रॉय की आज 130वीं जयंती हैं और उनको श्रद्धांजलि देने के लिए सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर दी हैं। पश्चिम बंगाल में जन्में इस चित्रकार ने दुनिया भर में भारतीय कला को एक अलग पहचान दिलाई। 20वीं शताब्दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जैमिनी राय एक प्रख्यात चित्रकार बने।
उनकी कला शैली पर भारतीय लोक कला का गहरा असर था। रॉय का जन्म 11 अप्रैल 1887 को पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के बेलियातोर में हुआ था। उन्होंने कोलकाता (तब कलकत्ता) को गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट में कला की शिक्षा ली थी।
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आर्ट स्कूल में कला के बंगाल स्कूल के संस्थापक अविंद्रनाथ टैगौर उनके गुरु थे और वाइस-प्रिंसिपल थे। रॉय को पश्चिमी कला की क्लासिक परंपरा का प्रशिक्षण मिला था लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने अपनी जड़ों की तलाश शुरू कर दी और लोक और आदिवासी कला से प्रेरणा लेकर रचनाकर्म शुरू कर दिया। माना जाता है कि रॉय की कला पर सबसे ज्यादा प्रभाव कालीघाट पाट स्टाइल का पड़ा था जिसमें मोटे ब्रश स्ट्रोक का उपयोग किया जाता है।
रॉय ने बहुत जल्द ही कैनवास और ऑयर पेंट का इस्तेमाल बंद करके लोक कलाकारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री का प्रयोग करना शुरू कर दिया। जैमिनी रॉय ने रामायण और श्री कृष्ण लीला से जुड़े चित्रों के साथ ही आम जीवन के नर-नारियों तक के चित्र बनाए। रॉय ने अपने चित्रों में सात प्राकृतकि रंगों का ही ज्यादातर प्रयोग किया है। आश्चर्य की बात है कि उन्होंने यूरोप के महान कलाकारों के चित्रों को भी बहुत सुन्दर अनुकृतियां बनाईं।
1920 के बाद के वर्षों में राय ने ग्रामीण दृश्यों और लोगों की खुशियों को प्रकट करने वाले चित्र बनाए, जिनमें ग्रामीण वातावरण में उनके बचपन के लालन-पालन के भोले और स्वच्छंद जीवन की झलक थी।
1930 के दशक तक अपनी लोक शैली की चित्र कलाकृतियों के साथ-साथ जैमिनी राय पोट्र्रेट भी बनाते रहे, जिसमें उनके ब्रुश का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नजर आता था।
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रॉय ने पश्चिमी कला और भारतीय लोक कला के सम्मिश्रण से अभूतपूर्व चित्रों का निर्माण किया। 1940 के दशक में रॉय की लोकप्रियता चरम पर थी। उन्होंने लंदन और न्यूयॉर्क में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगायी। 1946 में रामायण पर बनाए उनके 17 कैनवास उनकी कला का सर्वोच्च शिखर समझे जाते हैं।
करीब 60 साल तक जैमिन राय ने भारत सहित दुनिया भर में हुए बदला को दृश्य भाषा से प्रस्तुत किया। यही वजह है कि उन्हें आधुनिकतावादी महान कलाकारों में से माना जाता है। कला में उनके इसी योगदान को देखते हुए 1955 में भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण सम्मान से नवाजा। 1972 में दुनिया को अलविदा कह गए।
source - rochakkhabare.com
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