मुंबई। मुंबई के गोरेगांव में लड़को का एक समूह अक्सर फिल्मों का पहला शो देखा करता था। फिल्म देखने के बाद वे लोगों को बताते कि फिल्म कैसी हैं। एक दिन निर्माता-निर्देशक वी.शांताराम फिल्म देखने आए हुए थे। उन्होंने लडक़ो के समूह में एक लडक़े को फिल्म के बारे में लोगो से बातचीत करते हुए देखा।
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वी.शांताराम उस लडक़े से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि, वह उसे अपनी फिल्म में काम करने का मौका देगें। उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर अपनी फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' में काम करने की पेशकश की। यह लड़का रवि कपूर था जो बाद में फिल्म इंडस्ट्री में जीतेन्द्र के नाम से मशहूर हुआ। आज उनके जन्मदिवस के मौके पर एक नजर डालते है उनके जीवन पर....
सात अप्रैल 1942 को एक जौहरी परिवार में जन्में जीतेन्द्र का रूझान बचपन से हीं फिल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। वह अक्सर घर से भाग कर फिल्म देखने चले जाते थे। जीतेन्द्र ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'नवरंग' से की जिसमें उन्हें छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला।
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लगभग पांच वर्ष तक जीतेन्द्र फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के रूप में काम पाने के लिए संघर्षरत रहे। वर्ष 1964 में उन्हें वी.शांताराम की फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म के बाद जीतेन्द्र अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।
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वर्ष 1967 में जीतेन्द्र की एक और सुपरहिट फिल्म 'फर्ज' प्रदर्शित हुई। रविकांत नगाइच निर्देशित इस फिल्म में जीतेन्द्र ने डांसिग स्टार की भूमिका निभाई। इस फिल्म में उन पर फिल्माया गीत ..मस्त बहारो का मैं आशिक ..श्रोताओं और दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म के बाद जीतेन्द्र को ..जंपिग जैक.. कहा जाने लगा।
फर्ज की सफलता के बाद डांसिग स्टार के रूप में जीतेन्द्र की छवि बन गई। इस फिल्म के बाद निर्माता निर्देशकों ने अधिकतर फिल्मों में उनकी डांसिंग छवि को भुनाया। निर्माताओं ने जीतेन्द्र को एक ऐसे नायक के रूप में पेश किया जो नृत्य करने में सक्षम हैं। इन फिल्मों में 'हमजोली' और 'कारवां' जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं।
इस बीच जीतेन्द्र ने 'जीने की राह' ,'दो भाई' और 'धरती कहे पुकार' जैसी फिल्मों में हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया। वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म 'जैसे को तैसा' के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में उनके नाम के डंके बजने लगे और वह एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
70 के दशक में जीतेन्द्र पर आरोप लगने लगे कि वह केवल नाच गाने से भरपूर रूमानी किरदार ही निभा सकते है। उन्हें इस छवि से बाहर निकालने में निर्माता, निर्देशक गुलजार ने मदद की। और उन्हें लेकर 'परिचय', 'खुशबू' और 'किनारा' जैसी पारिवारिक फिल्मों का निर्माण किया।इन फिल्मों में जीतेन्द्र के संजीदा अभिनय से दर्शक आश्चर्यचकित रह गए।
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